पश्मीने के रंगों सी नरम-गरम हैं अदाएं तुम्हारी ,
वादियों से जैसे चलकर आ रही हो, शुआएं तुम्हारी !!
तेरा ये पैरहन जो मेरे बदन के गिर्द लिपटा सा है ,
प्यार के रेशों में गुँथी ज्यूँ , बेशुमार दुआएं तुम्हारी !!
तवील रातें ढलतीं हैं न लौ जाती हैं इन कंदीलों से ,
बस हवा आती है मेरी ओर, गोया हों सदाएं तुम्हारी !!
बादे-सबा भी कशमकश में होती हैं अलसुबह यूँ ही,
खुश्बू फूलों से चुराएं ,मुझसे ले जाएँ बलाएं तुम्हारी !!
खुश्बू फूलों से चुराएं ,मुझसे ले जाएँ बलाएं तुम्हारी !!
मन तो रौशन है, और रूह पर रूमानियत सी तारी है,
प्यार के धागों में गूंथ ली हैं मैंने सब, कथाएं तुम्हारी !!
मन बावरा सा बहकता है, बदन मुकाबिल है फूलों से,
नवम्बर की इस ठंड ने ओढ ली हैं वफाएं तुम्हारी !!
चाँद के नीचे हर रात आकाशदीप सी जलबुझी हूँ मैं ,
तुम लौट के तो आओ, मैं तय करूंगी सजाएं तुम्हारी !!
तुम लौट के तो आओ, मैं तय करूंगी सजाएं तुम्हारी !!
तस्वीर- साभार गूगल
8 comments:
Behad khubsurat abhivyakti
वाह....
कमाल की ग़ज़ल....
दाद कबूल करें !
अनु
वाह वाह
मजा आ गया पढ़ के
उम्दा रचना
बस हवा आती है मेरी ओर, गोया हों सदाएं तुम्हारी !!…… ................ तुम लौट के तो आओ, मैं तय करूंगी सजाएं तुम्हारी !!
सुन्दर ग़ज़ल रश्मि जी ,
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
वाह,पशमीना सा प्यार तुम्हारा ओढे हूं कांधों पर--
लाजवाब भावाव्यक्ति है ...
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