Friday, September 5, 2014

प्रकृति‍ पर्व 'करमा' पर सभी को ढेरों बधाई....




''ओताई दिन तो करम राजा
बोने बोनेम रहाले
आईज तो करम राजा 
आखेरा उपारे चंवरा डोलाते
आवै-आवै, भाले...भाले''

खोते जा रहे हैं ये लोकगीत, जो कभी ढोलक और मांदर की थाप पर अखड़ा में गुंजायमान रहते थे। लय और ताल के साथ थि‍रकते कदम..जब कदमताल करते हैं तो आंखों हटती नहीं।

'डाला का जावा है
खि‍ला-खि‍ला
आठ दि‍वस इसे
हल्‍दी पानी से है सींचा
तब है नि‍खरा पीला-पीला
खि‍ला-खि‍ला
रात भर बजाओ मांदर
आओ सखी हम
झूमर नाचे, करम गाएं '

तस्‍वीर-साभार गूगल 

5 comments:

कविता रावत said...

ओताई दिन तो करम राजा
..बहुत बढ़िया और विस्तार से करम राजा के बारे में लिखिए कभी उत्सुकता जागी हैं मन में
प्रकृति‍ पर्व 'करमा' पर आपको भी बधाई

कविता रावत said...

ओताई दिन तो करम राजा
..बहुत बढ़िया और विस्तार से करम राजा के बारे में लिखिए कभी उत्सुकता जागी हैं मन में
प्रकृति‍ पर्व 'करमा' पर आपको भी बधाई

सु-मन (Suman Kapoor) said...

सुंदर ..इस पर्व के बारे तो नहीं मालूम ..पर बधाई आपको

वाणी गीत said...

पर्व के बारे में बताती तो ज्ञानवर्धन हो जाता। यह "हरेला " जैसा कोई पर्व तो नहीं ?
बहुत बधाई !

Unknown said...

Is parb ka mahatwa indian tribes of chotanagpur k lie bahut mahatwa hi because of according to tribes tale..ek bar powerful jati in tribes ko samapti karne k liee enhe paglon kisi tarah dur rahe the tab we adiwasi ek gufa mei chup gaye or bahut dino tak use gufa mei rahe tab tak ye karam tree enhe maa ki tarah samval k rakha Or masiha ban kar enkita rakha kiya or naya jiwan diya... Kyonki gufa ko ye perr apni dali se is tarah dhake raha ki dushman vahan se Gujarat gare pr unhe dekh na payee or onhe apni jarron se pani ki dhara baha diya jise we apni pyas bugha payee tab se... Har sala ye enki puja karne lage