Tuesday, September 2, 2014

शाम की नीली चादर.....



नीले चादर पर नहीं जड़े हैं सलमा-सि‍तारे.....बस एक चांद की टि‍कुली है.....रहने दो इसे..जगमग ...तुम्‍हें पसंद है न गोरे चेहरे पर एक टि‍कुली..चांद सी...सि‍तारों की रौशनी को मद्धि‍म करती...

दूर ढोल की थाप पर बन्‍ने गाए जा रहे हैं....अकबकाहट सी
 होती है....बहुत पहचाने से हैं ये बोल...जैसे नींद में डूबी रातों को कोई गाता हो ब्‍याह के गीत और कदम थि‍रकते हों...लाल बुंदि‍यों वाले चांदी के पाजेब संग....छम..छम...

वो जा रहा है पश्‍ि‍चम में..देखो, सूरजमुखी का मुंह उतर गया है.....काले-नारंगी-पीले...सारे रंग अपनी मुट्ठि‍यों से उड़ेल कर चला जाएगा वो...रात के गले लग नहीं रोता अब कोई.....रतजगे की आदत हो गई है...बन्‍ने गुनगुनाओ...थि‍रक लो ढोलक की थाप पर......

'सखि‍यां आज मुझे नींद नहीं आएगी....'

वि‍हंसता चांद देख रहा है अंदर का अंखुआता आकर्षण...रात भर बजता है तेरे स्‍वर का मांदल....दो जोड़े पांव थि‍रकते हैं अनवरत....धरा की धूल चूमती है माथा.....आज जंगल से झर-झर झरेगी पत्‍ति‍यां और टि‍प-टि‍प का राग सुनाएगा बादल

चादर बड़ा है और टि‍कुली छोटी....एक बूंद फि‍र टपकी पत्‍ति‍यों की नोक से.....मांदल की थाप सुन रहे हो न....


तस्‍वीर...कल शाम की...

(उम्र की नदी का इक क़तरा )

2 comments:

डॉ एल के शर्मा said...

वि‍हंसता चांद देख रहा है अंदर का अंखुआता आकर्षण...रात भर बजता है तेरे स्‍वर का मांदल....दो जोड़े पांव थि‍रकते हैं अनवरत....!!
लगता है जैसे किसी ,चांदनी रात में भावों के रंग और शब्दों की तूलिका पकडे कोई सोच रहा है ...साधुवाद आपको ..शुभ-कामनाओं सहित !

डॉ एल के शर्मा said...

वि‍हंसता चांद देख रहा है अंदर का अंखुआता आकर्षण...रात भर बजता है तेरे स्‍वर का मांदल....दो जोड़े पांव थि‍रकते हैं अनवरत....!!
लगता है जैसे किसी ,चांदनी रात में भावों के रंग और शब्दों की तूलिका पकडे कोई सोच रहा है ...साधुवाद आपको ..शुभ-कामनाओं सहित !