Monday, September 1, 2014

रब तू अपनी मेहर रखना....


तेरे-मेरे 
छत के दरमि‍यां
सि‍र्फ
दो दीवारें 
एक गली 
और सैकड़ों लोग

ही नहीं,
न फांदी जा सके
ऐसी गहरी खाई भी है
मगर
चांद की चांदनी
ये फास्‍ले नहीं देखा करती.....

उम्र की नदी
जब वक्‍त के हाथ से
खुद को
आजाद करती है
तो अल्‍हड़ बच्‍चे सी
मचलती है
चांद पाने की
वो ही पुरानी जि‍द करती है...

उल्‍फत के अफ़साने पर
वक्‍त की पेंसि‍ल ने
खींच डाली है
अमि‍ट लकीरें
फास्‍ला-ए-शहर
हमें है मंजूर, बस
दि‍लों में दूरि‍यां न रखना
चांद तेरा भी है, मेरा भी
रब तू बस अपनी मेहर रखना....



तस्‍वीर- काले बादलों से घि‍रा चांद और मेरे कैमरे की नज़र..

5 comments:

  1. shukriya rashmi .
    bahutacchi nazm . muje bahut khushi hui aapke blog par aakar . meri kavitao ko padha aapne?

    www.poemsofvijay.blogspot.in

    aapka swagat hai
    vijay
    09849746500
    vksappatti@gmail.com

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  2. उम्र की नदी
    जब वक्‍त के हाथ से
    खुद को
    आजाद करती है
    तो अल्‍हड़ बच्‍चे सी
    मचलती है
    चांद पाने की
    वो ही पुरानी जि‍द करती है...
    बेहतरीन ..

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  3. चांद तेरा भी है, मेरा भी
    रब तू बस अपनी मेहर रखना....
    सुन्दर भावों के साथ रची खूबसूरत कविता , बधाई, रश्मिजी

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