Sunday, August 3, 2014

दोस्‍ती का दि‍न....


तब छुप-छुप के
चुप-चुप से
जाने कि‍तनी 
हम बातें कि‍या करते थे

दोस्‍तों को गि‍फ्ट नहीं
हथेली कस कर
अपनेपन का
अहसास दि‍लाया करते थे

अमरूद...खट्टी बेरि‍यां
नमक-मि‍र्च संग इमली
सबकी नजर बचा कर
मि‍ल-बांट खाया करते थे

देर शाम घर लौटने पर
मां की डांट से बचने को
जाने कौन-कौन सा
मंत्र बुदबुदाते थे

सुबह आंख खुलते ही
शाम का इंतजार करते
और मि‍लकर खूब
धमाल करते थे

सच है तब दोस्‍ती का
कोई दि‍न नहीं होता है
हम बस
केवल दोस्‍त
हुआ करते थे

एक-दूजे का संग-साथ पा
लड़ते-झगड़ते थे,पर
खुश..बहुत ही खुश
रहा करते थे

अब फेसबुक, व्‍हॉटसएप
और फोन पर बति‍याते हैं
भर साल में एक दि‍न
दोस्‍ती अब भी हम नि‍भाते हैं....

(((....सभी नए-पुराने और आभासी दुनि‍या के मि‍त्रों को 'मि‍त्रता दि‍वस' की ढेर सारी बधाई...)))

तस्‍वीर-साभार गूगल 

7 comments:

  1. शायद कुछ मजबूरियाँ बढ़ गयी हैं आज ,,... फिर भी याद यही दोस्तों की ये अच्छा है ... मित्रता दिवस की बधाई ...

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  2. बहुत खूब इमली की खटास बेर और न जानें कितने फलों की मिठास समेटे सुन्दर रचना

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  3. बहुत खूब इमली की खटास बेर और न जानें कितने फलों की मिठास समेटे सुन्दर रचना

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  4. सुन्दर अभिव्यक्ति

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  5. सुन्दर अभिव्यक्ति

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