ये गहराती रात....पानी पर झिलमिल करती रौशनी की झालर....खाली किश्तियां किनारों से बंधी बस डोलती हैं.......
चलो न आज गंगा की लहरों को नाप आए...तुम चप्पू चलाना..मैं नाव में लेटकर सुनूंगी जल संगीत....मेरे बालों को छूती शांत हवा तुम्हारे हाथों को छू विलीन हो जाएगी...
एकांत का सांय-सांय और पंचकोसी की परिक्रमा....आज पूर्णिमा है न.......चांद भी होगा साथ....कल्पना करो दियारे की रेत शीतल हाेगी और गंगा पर हमारी अकेली किश्ती......
झिलमिल..झिलमिल पानी की चादर..........हवाओं का ओढ़ना.....एकांत का संगीत
मैं और गंगा घाट.................
my photography
3 comments:
सुन्दर खुश नुमा कल्पना
बिल्खुल ठीक कहा है .
ख़्वाबों में खो जाने का मन करता है ...
बहुत खूब ...
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