सांसें कर रही हैं आज मुझसे बेईमानी.....सीने में अटका सा है कुछ....गर्म हवाएं थमी-थमी सी हैं...दिन से सांझ...सांझ से रात का सफ़र बदस्तूर जारी है...
सब तो है पास...सिवा तेरे...जबकि वाकिफ थे तुम कि बहुत मुश्किल है मेरे लिए ये वक्त निकालना.....जिसने एक दिन के 24 घंटे के बजाय 36 घंटे सा वक्त गुजारा हो....साथ-साथ, उसे एक पल भी सदियाें सा लगता है।
भावनाओं के समुद्र में हिलोरें उठ रही हैं......तुम एक याद बन सीने से लिपटे हो...कस रहे हो मुझे...मेरा सांस लेना मुहाल हो उठा है... ह्रदय की इस ऐंठन के साथ वक्त पलट रहा है गुजरा पन्ना......
आओ...जी लें...फिर एक बार तन्हा हो लें....मैं रो लूं जरा....तुम....तुम्हारा पता नहीं, क्या करोगे.....
खुशियां साझा होती हैं......दर्द तन्हा......इंतजार एक के हिस्से ही आता है......
मैं इंतजार में हूं.....एकांत में पड़े इस पत्थर के बेंच की तरह...
3 comments:
सही कहा है आपने
खुशियां साझा होती हैं......दर्द तन्हा......
बहुत खूबसूरत अहसास...
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (27.06.2014) को "प्यार के रूप " (चर्चा अंक-1656)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, वहाँ पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।
इंतज़ार,इंतज़ार और बस इंतज़ार ,बहुत सुन्दर
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