यकीन के दरीचों से झांककर देखना एक बार......प्यार गुलमोहर की झड़ी पत्तियों में छुपा तड़प रहा है.....लाल फूलों की चादर है बिछी....एक उन्मादी हवा चल रही है....उड़ा रही है सूखे पत्ते..संग उड़ी जा रही है शब्दों की गरिमा....
देखो तो एक बार...आंखें खोल के..जिस्म मेरा कसा है शफ्फ़ाक कपड़ों में....मेरी रूह सफ़र पर है....अब मैं एक ताबूत में लेटी हुई 'ममी' हूं...मगर निष्प्राण नहीं हैं आंखें...वो देख रही हैं धूल भरी आंधी....मैं भी उड़ना चाहती हूं....मुझे रेस लगानी है हवाओं से....पूछना है पत्तों से उनके टूट कर गिरने का सबब...
जुंबा खामोश है....आंखें नहीं देखता वो मेरी.....मेरी पेशानी के बल वक्त की मेहरबानी नहीं..मेरे खुदा की दी जागीर है....अटा पड़ा है मेरा बदन...धूल से....ये मेरी चाह तो नहीं....
तड़कता है नस माथे का.....लगता है 'प्रेम' अब सोनमछरिया बन गया है। किसी ने निकाल दिया उसे कमलदल वाले तालाब से...अब गर्म रेत पर छटपटा रहा है वो....बस कुछ देर और...निकल ही जाएगा प्राण ....चट से पलट जाएगा प्रेम मछरिया......सांसे हवा हो जाएंगी, चंचल गोते खत्म.....सफ़ेद पेट वाला हिस्सा रह जाएगा आंखों के आगे.....चिमटे से पकड़ दूर फेंक आएगा कोई्....
प्रेम....अंतहीन प्रेम...क्या यही था तेरा अंजाम.....
वो बात....जाे तुम्हें भी नहीं मालूम .....
तस्वीर..साभार गूगल
2 comments:
प्रेम कितने ही रूपों में हमारे सामने आ धमकता है। . ...
बढ़िया प्रस्तुति
सुंदर
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