Thursday, April 17, 2014

पुरसुकून झोंका.....



सूरज की कि‍रणों संग
लि‍पटकर
आज उदासी आई थी
मेरे घर
उदास, गर्म हवा के साथ
मलि‍न हुआ मन
कसक उठी सीने में
उस ओर
जहां तुम्‍हारे होने का
सुकून भरा होता था

मैं रोकना चाहती हूं
बेचैनि‍यों को
जो होकर बदहवास
खटखटा रही हैं
मेरे मन का दरवाजा

आंखों में उम्‍मीद भर
मैं तकती हूं चारों ओर
कहीं से कोई
पुरसुकून झोंका आए
और ढक ले
अपने आवरण में मुझे
मैं भूल जाऊं
उदास दस्‍तक
चली जाऊं
मन के आंगन में, जहां
नीले गुलमोहर की
सुकून भरी छांव है
जो हमारे जन्‍मों के
प्‍यार की ठांव है।

my photography- नीले गुलमोहर के फूलों से लदा पेड़ जो मुझे बेहद पसंद है..

4 comments:

वाणी गीत said...

प्रकृति के हर रंग खूबसूरत है प्रेम की ही तरह . नीला गुलमोहर भी बहुत भाया !

Mahesh Barmate "Maahi" said...

बहुत खूब :)

virendra sharma said...

सुन्दर सार्थक भाव अनुभाव से संसिक्त रचना। शुक्रिया आपकी टिप्पणी का।

virendra sharma said...

सुन्दर सार्थक भाव अनुभाव से संसिक्त रचना। शुक्रिया आपकी टिप्पणी का।