Friday, April 11, 2014

ये जुबां की बदमाशी है..दि‍ल तो....


धोरों खि‍ला कास – फूल”- (भाग –IV)

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तुम डूबे हो मेरे प्‍यार में.....और मैं डूबकर भी कि‍नारे पर होने का दि‍खावा करती...बेपरवाह सी हूं। जब कहते हो तुम मुझसे...मि‍लो एक बार.....बहुत दि‍न हुए...चलो, कॉफी पीते हैं कि‍सी रेस्‍टोरेंट में या फि‍र मंदि‍र दर्शन कर आएं साथ-साथ......मैं एकदम से नकार जाती हूं। कहती हूं...अरे नहीं...इस संडे मुझे घर ठीक करना है..या मेरी मौसी आनेवाली है...या.....ये..वो.. ...

समझते हो तुम कि मेरा मन नहीं मि‍लने का। सब बहाने हैं ये। फि‍र भी तुम हुलस के कहते हो.....कोई बात नहीं ..हम अगले सप्‍ताह मि‍ल लेंगे..तब का कोई प्रोग्राम मत रखना। और दुनि‍यां जहान की बातों में व्‍यस्‍त हो जाते हो। ऑफि‍स की बातें....दोस्‍तों की बातें...और मेरी पसंदीदा फूलों और मौसम की बातें। मैं भी कुछ देर बातें करती हूं और रख देती हूं फोन...मगर

तुम्‍हें नहीं पता जब कुछ देर तक तुम्‍हारी आवाज नहीं सुन पाती मैं.....तड़प जाती हूं....हर वक्‍त आंखों में तुम्‍हारा ही चेहरा रहता है और जुबां पर तेरा ही नाम।
दि‍ल से ये ख्‍वाहि‍श होती है कि कैसे भी हो....मैं तुम्‍हें खुश रखूं....तुम्‍हें वो सब दूं जि‍सकी चाहत है तुम्‍हें मुझसे या उम्‍मीद है।

मैं नहीं जानती कि कल क्‍या होगा, मगर आज मैं मानती हूं....मुझे बेहद प्‍यार है तुमसे....बहुत ज्‍यादा...मेरी सोच और तुम्‍हारी उम्‍मीद से भी ज्‍यादा.....एक बांध है प्‍यार का...को खुद को तोड़ने पर उतारू है....वो भरभरा कर बहना चाहता है..रीतना चाहता है....तुम्‍हें भरना चाहता है..कहना चाहता है....समेट लो मुझको...थाम लो..बह चलो मेरे साथ....दूर...बहुत दूर......

मगर ये चुप्‍पी.....ये जुबां की बदमाशी है..दि‍ल तो....


साल के पेड़ पर आई बहार को कैद कि‍या मेरे कैमरे ने


9 comments:

  1. अच्छी अभिव्यक्ति।

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  2. बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति, आपका आभार।

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  3. -सुंदर रचना...
    आपने लिखा....
    मैंने भी पढ़ा...
    हमारा प्रयास हैं कि इसे सभी पढ़ें...
    इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना...
    दिनांक 14/04/ 2014 की
    नयी पुरानी हलचल [हिंदी ब्लौग का एकमंच] पर कुछ पंखतियों के साथ लिंक की जा रही है...
    आप भी आना...औरों को बतलाना...हलचल में और भी बहुत कुछ है...
    हलचल में सभी का स्वागत है...

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  4. -सुंदर रचना...
    आपने लिखा....
    मैंने भी पढ़ा...
    हमारा प्रयास हैं कि इसे सभी पढ़ें...
    इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना...
    दिनांक 14/04/ 2014 की
    नयी पुरानी हलचल [हिंदी ब्लौग का एकमंच] पर कुछ पंखतियों के साथ लिंक की जा रही है...
    आप भी आना...औरों को बतलाना...हलचल में और भी बहुत कुछ है...
    हलचल में सभी का स्वागत है...

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  5. कभी-कभी चुप्पी भी बहुत कुछ कह जाती है.
    बहुत सुंदर.

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  6. सुन्दर रचना और सुन्दर चित्र

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  7. बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति। … बधाई

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  8. प्रेम एवं समर्पण संकोच एवं झिझक की दुविधा को ईमानदारी से बयान करता खूबसूरत आलेख ! बहुत आत्मीय सी प्रस्तुति !

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