Thursday, April 10, 2014

तुमसे है प्‍यार और तुमसे ही नाराजगी भी...


बेहद नाराज थी मैं उससे....इतनी..कि‍ जी चाह रहा था.....न कभी मि‍लूं उससे...न फोन लूं उसका......
शायद इस बात का अहसास हो गया था उसे.....कई बार के कॉल के बाद बेमन से मैंने फोन उठाया......मेरे हलो के जवाब में उसकी बहुत ही मीठी आवाज आई....कैसा है
 तू.....

मैं पहचानती हूं इस टोन को....ये मनुहार भरी आवाज है....मगर मैं भी दृढ़ हूं......नहीं पि‍घलना मुझे....जाने खुद को क्‍या समझता है....जब जी आया गुस्‍सा....जब जी आया प्‍यार....जैसे कि‍ हमारी कोई मर्जी ही नहीं.....

तुम लगातार मनाते रहे मुझे....समझाते रहे...बताते रहे....अपनी मन:स्‍थि‍ति‍.....मगर मैं भी जि‍द पर अड़ी रही...

नहीं मानना तो नहीं मानना....

तुम्‍हें देर हो रही थी आॅफि‍स के लि‍ए......खुद के लि‍ए चाय बना रहे थे.....पूछा....तुम पि‍ओगी....और कोई वक्‍त होता तो कह देती....हां..हां...क्‍यों नहीं....मगर उस वक्‍त......

आखि‍रकार तुमने अपना ब्रहमास्‍त्र चलाया........फूल वाेल्‍यूम में गाना शुरू कि‍या......'' हम...तेरे बि‍ना जी न सकेंगे सनम....दि‍ल की ये आवाज है.......'' साथ ही साथ मि‍मि‍क्री शुरू.....मुझे बि‍नाका गीतमाला सुनाने लगे.....
अमीन सयानी की आवाज में....
तो भाईयों और बहनों....सुनि‍ए इसे....कैसे मनाया जाता है अपनी प्रि‍या को.....

देखि‍ए...यहां पि‍च उपर होनी चाहि‍ए.....यहां एकदम नीचे....आवाज ऐसी.....ध्‍यान रहे...आंसू नहीं आए आंखों में....मगर होंठो पर हंसी भी नहीं...वरना सब गड़बड़ हो जाएगा...

अब मेरे कुछ कहने-सुनने की कोई बात नहीं...मुझे सुनना ही सुनना था....और तुम्‍हें गाना था....बस एक लाइन...
अलग-अलग भावों में पि‍रोकर........

'' हम...तेरे बि‍ना जी न सकेंगे सनम....'' होंठो पर हंसी आई.....मन पि‍घला..गुस्‍सा छूमंतर

वादा करो...कभी नहीं बदलोगे...यूं ही रहोगे.....हमेशा...हमेशा

5 comments:

  1. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (11.04.2014) को "शब्द कोई व्यापार नही है" (चर्चा अंक-1579)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, वहाँ पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।

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  2. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (11.04.2014) को "शब्द कोई व्यापार नही है" (चर्चा अंक-1579)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, वहाँ पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।

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  3. सुन्दर प्रस्तुति, मन जब विकल हो जाता है तो न जाने क्या क्या सोच जाता है पर याद भूलने नहीं देती

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  4. sacche prem me narazgi paani ke bulbule ki tarah hi hoti hai .....bahut badhiya !

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