Sunday, March 16, 2014

‘जोगि‍या पलाश’ की टहनी पर


दोपहरि‍या फागुन की 
तेज बह रही 
फगुनाहटी बयार
हथेलि‍यों में धरे हैं 
चुटकी भर 
तेरे भेजे रंग-गुलाल 

संग है एक
छोटी सी पर्ची
लि‍खा है जि‍स पर
गुलाबी रंग गालों के लि‍ए 
और लगा लेना 
लाल रंग अपनी मांग में
सिंदूर की तरह

रखना ध्‍यान 
कि‍ मुझसे पहले 
कोई और 
न रंग पाए तुम्‍हें 
फि‍र देना मुझको 
रंगों भरी
मेरी प्रि‍या की
एक तस्‍वीर 

छुपाकर माथे पे 
लगा लूंगी एक टीका 
तेरे भेजे गुलाल से 
उस प्यार के रंग लाल से 
मेरे चेहरे की धूप 
हो उठेगी अबरीली 
हो जाएगी
शाम होली की नशीली 

मगर कल शाम देखा 
‘जोगि‍या पलाश’ की 
टहनी पर  
टि‍का था चांद 
मैंने पूछा उससे 
क्‍या इस बरस भी 
बि‍न साजन
बीतेगी होली  

मेरे रंगरेज को तूने 
क्‍यों भेजा परदेस  
तेरे इन चटक रंगो से 
अब मुझे क्‍या काम 

ऐ चांद 
सारी दुनिया रंगी होगी
आज
टेसू रंग से, पर मुझ बिरहा काे
नहीं कि‍सी रंग का भान

हो सके तो 
उस निर्मोही को
भेज देना मेरा ये पैगाम
रंगी हूं उसके प्रेम रंग में
जब आओगे तब रंगना इस तन को
हरा, पीला, गलाबी और लाल......l

my photography 

3 comments:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

सुंदर प्रस्तुति...!
सपरिवार होली की हार्दिक शुभकामनाए ....
RECENT पोस्ट - रंग रंगीली होली आई.

Udan Tashtari said...

बहुत बढ़िया!!

प्रतिभा सक्सेना said...

ये तो कोई बात नहीं बनी,भेज दिये रंग गुलाल,कि लो रँग लो अपने गाल: शिकायत सही है!