Wednesday, January 29, 2014

शाम बन ढल जाती है....


आज फि‍र
शाम को
ठि‍ठुरता सूरज
पहाड़ों की गोद में
छुप गया

जैसे तुम्‍हारा ख्‍याल
आता है और
मन के कि‍सी कोने में
छुप जाता है


रात के साए में
मेरी पलकें
बरबस बंद होती है
और तुम्‍हारी याद
आधी रात को
टूटे ख्‍वाब सी आती है

शाम की ठि‍ठुरन
रात का सन्‍नाटा
और इंतजार का उजाला
जाने कौन
मेरे आंचल में
भर जाता है

ये सर्दियों की लंबी रातें
ठंड के साथ
यादों के लि‍हाफ़ भी
ओढ़ा जाती है
फि‍र एक सुबह
शाम बन ढल जाती है....



4 comments:

Kailash Sharma said...

ठंड के साथ
यादों के लि‍हाफ़ भी
ओढ़ा जाती है
फि‍र एक सुबह
शाम बन ढल जाती है....

...अद्भुत..बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना..

Misra Raahul said...

काफी उम्दा रचना....बधाई...
नयी रचना
"सफर"
आभार

शकुन्‍तला शर्मा said...

कमनीय कविता । शब्द-चित्र और चित्र काव्य दोनों मन-मोहक हैं । बधाई ।

Onkar said...

बहुत सुन्दर