Sunday, January 19, 2014

एक फांक.....


मैं हूं
पूरी शिदृत से
वो भी है
समर्पित सा
फि‍र
एक फांक सा
क्‍यों रह जाता है दरमि‍यां.....
क्‍यों होती है
गए वक्‍त को
पकड़ने की चाहत

या छूटे से
जुड़े रहने की हसरत...
क्‍या है
जो कचोटता है
ले जाता है
जैसे डोर से बांधकर
तुम आए
तो सब छोड़ क्‍यों नहीं आए
हो...तो पलटते क्‍यों हो.....


तस्‍वीर..ढलती सांझ और मेरे कैमरे की नजर...

2 comments:

Anonymous said...

sach me yah ichcha to sabki hoti hai .nice .

Onkar said...

सुन्दर