रूप का तिलिस्म जब अरूप का सामना करे, तो बेचैनियां बढ़ जाती हैं...
Tuesday, December 17, 2013
धूम्ररेखा....
जलते हृदय से उठती है
श्वेत धूम्ररेखा
छटपटाता है सिरे से बंधा
मेरा अस्तित्व
मैं भावना हूं
शब्द नहीं
मगर शब्दभेदी बाण
आहत कर जाते हैं
मेरा मर्मस्थल
4 comments:
bahut sundar , gagar me sagr bhare shabd ...
सुन्दर प्रस्तुति-
आभार आपका-
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 19-12-2013 को चर्चा मंच पर टेस्ट - दिल्ली और जोहांसबर्ग का ( चर्चा - 1466 ) में दिया गया है
कृपया पधारें
आभार
बहुत खूब !
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