Friday, December 20, 2013

वो तुम ही थे....


हां
वो तुम ही थे
जो मेरी हर सांझ को
उदास कि‍या करते थे

जो सर्द....कोहरे भरी

तवील रातों को
जाने कहां से छुपकर
आवाज दि‍या करते थे

हां
वो तुम ही थे
जो मेरे भीतर
एक अबूझ सी छटपटाहट
भरा करते थे

नहीं जानती थी तब
उदासी की वजह
बस बेवजह की उदासी के
गले लग
खूब रोया करती थी

पूछती थी खुद से
बार-बार
कि आखि‍र क्‍या कमी है
क्‍या चाहि‍ए और
इस जिंदगी से

हां
वो तुम ही थे
जि‍सकी आस में डूबकर
खामोश खाली नि‍गाहों से
चांद का
घटना-बढ़ना तकती थी

अब आके जब
तुम मि‍ले हो, भर गई मैं
एक सुकून तारी है
जि‍स्‍म-ओ-जां में
चाहती हूं अब छलकूं नहीं
भरे कलश सी रहूं

हां
वो तुम ही थे, तुम ही हो
जि‍सकी आवाज के सहारे
एक आकृति रची मैंने
और अब साकार हुई
तुमसे मि‍लकर...तुम्‍हें पाकर..




तस्‍वीर....उस वक्‍त की ..जो गुजर गया

8 comments:

Harihar (विकेश कुमार बडोला) said...

गहरा अहसास।

vandana gupta said...

बहुत सुन्दर

सुनीता अग्रवाल "नेह" said...

gahre bhaw ..sundar ahsas

Misra Raahul said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (22-12-2013) को "वो तुम ही थे....रविवारीय चर्चा मंच....चर्चा अंक:1469" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!!

- ई॰ राहुल मिश्रा

कालीपद "प्रसाद" said...

अनिभूति की सुन्दर अभिव्यक्ति !
नई पोस्ट चाँदनी रात
नई पोस्ट मेरे सपनों का रामराज्य ( भाग २ )

Rewa Tibrewal said...

bahut sundar...pyar say bhari rachna

Onkar said...

सुन्दर प्रस्तुति

Onkar said...

बहुत सुन्दर रचना