Saturday, November 9, 2013

पानी के बरक्‍स......


डूबते सूरज के साथ
अक्‍स तेरे
कुछ धुंधलाए से लगे
पानी के बरक्‍स
मेरी आंख में आंसू
कुछ झि‍लमि‍लाए से लगे

छह दि‍न का नन्‍हा चांद
सूरज से डर कर
रात के कि‍नारे जा
डूब गया
सुबह कि‍रणों की आस में
पूरब की ओर
हम टकटकी सी लगाए रहे

भोर के लालि‍मा में
कौंधा एक उदास चेहरा
बात एक पहर की थी
पर लगा
जाने कब से उसे
हम तो भुलाए से रहे

उगते सूरज को
अर्पित कर
भर अंजुरी जल
मन के कुम्‍हलाए फूल
हमें खि‍लखि‍लाए से लगे

आओ मि‍लकर
देखें उस ओर
जहां से जीवन में
उजि‍यारा भरता है
देखो फि‍र एक बार
प्रेम की लालि‍मा से
हम नहाए से लगे...

4 comments:

Anamikaghatak said...

Sundar panktiya......umda

Onkar said...

बहुत कोमल-सी रचना

Amit Chandra said...

खुबसुरत रचना.

सादर.......

विभूति" said...

भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने.....