Monday, November 25, 2013

जीवन का यह यज्ञ.....


मेरी प्रार्थनाओं में

जब से 
तुम शामि‍ल हुए हो 
मन मेरा 
समि‍धा बन बैठा है 

हर आहुति के साथ 
तेज धधक उठती है 
प्रेम की ज्‍वाला 
और
हर स्‍वाहा के साथ
तुममें जा मि‍लने को
व्‍यग्र, आतुर मन
है पूर्णाहुति की प्रतीक्षा में

आओ
मि‍लकर पूर्ण करें
जीवन का यह यज्ञ
तुम हवन कुंड बनो
मैं समि‍धा बन तुममें
समाहि‍त हो जाउं
और पवि‍त्र श्‍लोक बन
हर जन्‍म तुम्‍हें याद आउं....


तस्‍वीर--बोधगया के बोधि मंदि‍र का शीर्ष और डूबते सूरज पर मेरे कैमरे की नजर...

4 comments:

  1. bahut sundar rachana nischay hi mn ko prbhavit karane wali ......samidha to mn bn hi jata hai .

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  2. मैं आपकी हर रचना को पढ़ती हूँ। आपके विचार मुझे बड़े अपने अपने से लगते हैं।

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