जिंदगी शाम है
मैं सूना तट
और तुम समुंदर
गहराती रात के साथ
दूर होता जाता है
समुंदर
और वीरान होता है
सूखा तट
लहरों से बिछड़ने का
होता है
तीव्र मलाल
दर्द भरी हसरत लिए
जागती है रात
आकुल हो राह
तकती है समंदर की
कि भोर की पहली किरण देख
आवेग भरी लहरें
उद़दात होंगी
समुंदर को भी
तट से बिछुड़ने का
अहसास होगा
आएंगी लहरें,
प्यार लिए
देने का अभिमान लिए
भिंगोएगी
बार-बार और
लौट जाएंगी लहरें
फिर ढलेगी शाम
क्योंकि
जिंदगी शाम है
मैं सूना तट
और तुम समुंदर
तस्वीर...अरब सागर के किनारे एक शाम की
खुबसूरत सी रचना ।
ReplyDeleteमेरी नई रचना :- सन्नाटा
बढ़िया प्रस्तुति-
ReplyDeleteआभार आदरणीया-
नवरात्रि की शुभकामनायें-
बहुत खूबसूरत रचना .
ReplyDeleteनवरात्रि की शुभकामनाएँ .
सुन्दर प्रस्तुति !!
ReplyDeleteबेहद सुन्दर रचना...
ReplyDelete:-)
बहुत सुंदर रचना है
ReplyDeleteजिंदगी शाम है
मैं सुना तट
और तुम समंदर
बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ हैं
आपकी अन्य कविताये "शब्द संवाद" में पढीं सभी कविताये दिल को छू गयी
सुन्दर ,सरल और प्रभाबशाली रचना। बधाई।
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें।
सादर मदन
http://saxenamadanmohan1969.blogspot.in/
http://saxenamadanmohan.blogspot.in/
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteनवरात्रि की शुभकामनाएँ!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति !
ReplyDeleteनवरात्रि की शुभकामनाएँ!