आज दैनिक भास्कर पर दिल्ली डेटलाइन से एक लीड खबर पढ़ी....'दीदी मुझे कपड़े पहनने नहीं देती' ... मैंने सोचा कि मैं भी कुछ भुक्तभोगी लड़कियों के अनुभव साझा करूं...
13 वर्ष की गुड़िया.....तोरपा की रहने वाली। रिश्ते के भैया-भाभी दिल्ली घुमाने के बहाने से ले गए। कुछ दिनों तक अपने पास रखा, उसके बाद एक दिन एक प्लेसमेंट ऐजेंसी को सौंप दिया। यह कहकर कि कुछ पैसे कमा लो, फिर हम सब गांव वापस चले जाएंगे। संभवत: शाहदरा के विश्वास नगर में रहती थी वो, जैसा कि अपनी याद से गुड़िया बताती है।
कहती है गुड़िया कि उसके जैसी और भी कई लड़कियां थी एक कमरे के प्लेसमेंट एजेंसी में। कुछ दिनों बाद उसे एक घर में काम पर लगा दिया गया। शुरूआत में उसे 1500 देने की बात थी, मगर एक भी पैसा उसके हाथ नहीं आया। घर के मालिक कहते थे कि तुम्हारे भैया-भाभी पैसा ले लेते हैं आकर।
वो बच्ची दिन भर काम में लगी रहती। धीरे-धीरे बड़ी होने लगी। मगर उसके भैया-भाभी कभी दुबारा मिलने नहीं आए। पूछने पर जवाब मिलता कि वो इसलिए तुमसे नहीं मिलते कि तुम उन्हें देखकर रोने लगोगी। भाई का नाम भाते भेंगरा और भाभी का नाम उर्शीला भेंगरा बताती है गुड़िया।
काम करते करते उसे 4 साल हो गए। न कभी भार्इ्र-भाभी आए...न ही मां की कोई खबर। पिता तो पहले ही नहीं थे। जिस घर में काम करती थीं, वहां उसे अपमान और प्रताड़ना झेलनी पड़ी। दिन भर काम करने के बावजूद आराम के दो पल नहीं देता था कोई। जरा देर के लिए बैठने पर डांट पड़ती थी।
बड़ी होती गुड़िया को यौन प्रताड़ना भी झेलनी पड़ी। घर में ही रहने वाला दामाद अकेला पाकर छेड़छाड़ करता था। कुछ दिन सहन करने के बाद शिकायत की। हालांकि गुड़िया कहती है कि शिकायत करने पर आंटी ने अपने दामाद को खूब डांटा।
मगर अब गुड़िया की सहनशक्ति जवाब देने लगी। वह घर आना चाहती थी। गांव की याद आती थी उसे। मां की याद आती थी। एक दिन पड़ोस की रहने वाली सहेली से मिलने भाग गई। कुछ दिन वहीं रही...वापस काम पर जाने का कतई मन नहीं था उसका। उसकी सहेली के पिता ने थाने में खबर कर दी। वह चार महीने तक रिमांड होम में रही। आखिरकार उसका पता ढूंढकर उसे वापस झारखंड भेजा गया। अब वो नाजेरात कान्वेंट के आश्रयस्थली में है। उसके परिजनों की खोज जारी है।
गुड़िया की उम्र तब 13 बरस की थी जब वो यहां से गई थी। 17 वर्ष की उम्र में वापस आई है। आंखों में सपना लिए कि अपनी मां के साथ रहेगी, उसकी आंचल की छांव में। गांव के पीपल के नीचे गोटियां खेलेगी सहेलियों संग। मगर उसे अपने गांव के नाम के अलावा कुछ भी याद नहीं। जाने वो नाम भी सही है या नहीं। उसकी मां जिंदा है या क्या पता वो किसी और शहर या गांव चली गई हो।
इन सवालों को न कोई जवाब मासूम गुड़िया के पास है न ही पुलिस न शेल्टर होम कें संचालको के पास.....बस एक उम्मीद और होठों पर दुआ कि.....बरसों से बिछड़ी बच्ची को उसकी मां के आंचल की छांव मिले।
दूसरी तरफ है लातेहार महुआटांड सुगमी की एक 14 वर्षीया बच्ची करमी। रिश्ते की एक आंटी ले गई उसे। पांच महीने तक रही दिल्ली में। लौटी तो हाथ में हजार रुपए भी नहीं थे।काम करने वाले घर में पिता समान मालिक अपशब्द कहता था। आंटी से शिकायत की मगर कोई फायदा नहीं हुआ। अकेले होने पर शारीरिक उत्पीड़न झेला। एक दिन भाग निकली। पहले र्निमलछाया में 2 महीने रही और अब किसान सेवा संघ के शेल्टर होम किशोरी निकेतन में।
इन सवालों को न कोई जवाब मासूम गुड़िया के पास है न ही पुलिस न शेल्टर होम कें संचालको के पास.....बस एक उम्मीद और होठों पर दुआ कि.....बरसों से बिछड़ी बच्ची को उसकी मां के आंचल की छांव मिले।
दूसरी तरफ है लातेहार महुआटांड सुगमी की एक 14 वर्षीया बच्ची करमी। रिश्ते की एक आंटी ले गई उसे। पांच महीने तक रही दिल्ली में। लौटी तो हाथ में हजार रुपए भी नहीं थे।काम करने वाले घर में पिता समान मालिक अपशब्द कहता था। आंटी से शिकायत की मगर कोई फायदा नहीं हुआ। अकेले होने पर शारीरिक उत्पीड़न झेला। एक दिन भाग निकली। पहले र्निमलछाया में 2 महीने रही और अब किसान सेवा संघ के शेल्टर होम किशोरी निकेतन में।
वहां उसके परिजनों को खबर कर लड़की को उसके घर भेजा गया। मगर कुछ दिन बाद वापस आ गई। उसके पिता ही उसे वापस छोड़ गए। क्योंकि उसकी मां दिन भर शराब पीकर पड़ी रहती है। कोई काम भी नहीं। पिता को डर है कि करमी अपने घर रही तो फिर किसे के चंगुल में फंसकर दूर हो जाएगी।
आंखों में बेपनाह चमक लिए करवी टीचर बनने के लिए जोरदार पढ़ाई कर रही है। चंचल करवी खुश है...भविष्य की आस लिए...
आंखों में बेपनाह चमक लिए करवी टीचर बनने के लिए जोरदार पढ़ाई कर रही है। चंचल करवी खुश है...भविष्य की आस लिए...
तस्वीर--साभार गूगल
सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeletedukhad sachchai
ReplyDeletesarthak post....
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