Saturday, October 5, 2013

पराए शहर की खुश्बू...


डाल जाती है हर रोज़
उद्वेलित सी साँझ
मेरी छत पर
सिन्दूरी आसमान का
एक टुकड़ा
और
एक इंतज़ार का सिरा !

मैं रख लेती हूँ
पकड़ उसी सिरे को
जो तुम्हारे पदचिन्हों के पीछे
चलकर जाता है
एक पराये से अनदेखे शहर में

मगर मैं
जाना नहीं चाहती
अपने आलिन्द से दूर
पुरसुकून हवाओं से परे
कि आग सी झुलसाती है
पराए शहर की खुश्बू...
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जानते हो ना तुम 
कि ढलते और उगते सूरज की एक सी होती है छवि मगर डूबने और उगने में कि‍तना अंतर होता है
छि‍तर जाते हैं भावनाओं के रेशे - रेशे जब हम कि‍सी बात को लेकर अड़े होते हैं युद्धरत से आमने-सामने

ये भी है कि एक बात जो भोर के उजाले के साथ हमारे दरमि‍यां कोबरे की तरह फन काढ़े खड़ी होती है वह शाम की कि‍रणों से रंगकर और भी चमक जाती है कुछ चलता है हमें छलता है वि‍षाद की धूम्र रेखाओं से आंखों में पानी भरता है
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अंतत रात के 
अगले मोड़ पर
वक्त को रोककर हम करते हैं समझौता अपने-अपने केंचुल उतार
समझौते के वस्त्र पहन हि‍ल-हि‍ल कर हंसते हैं और श्वेत बि‍स्तर के पैताने अपनी कड़वाहट को कल भोर तक के लि‍ए मुल्तवी करते हैं... विभोरित पांखियों सा नीड बुनते हैं बैचैन नींद की राहों से सपन चुनते हैं .... फि‍र एक नए सवेरे के लि‍ए !!

8 comments:

Dr ajay yadav said...

बहुत खूबसूरत |

Anonymous said...

आपने लिखा....हमने पढ़ा....
और लोग भी पढ़ें; ...इसलिए आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल में शामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा {रविवार} 06/10/2013 को इक नई दुनिया बनानी है अभी..... - हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल – अंकः018 पर लिंक की गयी है। कृपया आप भी पधारें और फॉलो कर उत्साह बढ़ाएँ | सादर ....ललित चाहार

Dr.NISHA MAHARANA said...

sundar ......bhawmay ...

Darshan jangra said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति

वोट / पात्रता - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः30

Neeraj Neer said...

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति .. आपकी इस रचना के लिंक की प्रविष्टी सोमवार (07.10.2013) को ब्लॉग प्रसारण पर की जाएगी, ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें .

dr.mahendrag said...

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति कैसा हो जाता है मन, जब देखता है
'' कि ढलते और उगते सूरज की एक सी होती है छवि मगर डूबने और उगने में कि‍तना अंतर होता है '' सुन्दर प्रस्तुति हेतु आभार.

nayee dunia said...

बहुत सुन्दर रचना .......

मेरा मन पंछी सा said...

बहुत ही सुन्दर रचना...