शरद पूनो वाले चांद
तुम तो आज
अपनी चांदनी
बरसाकर
कमल-कुमुदिनी खिलाते हो
ओस की बूंदे बिखेरकर
कोहरे का अहसास
दिलाते हो
ठंडी चांदनी तले
प्रिय की याद में
आंखें भी नम करवाते हो
पर बताओ
चंद्र फूल (धतूरा )
जो खिल उठा है
अपर्णा के स्पर्श से
विहंस उठे हो शंकर जैसे
आज चांदनी के स्पर्श से
उसकी खुशी को
तुम जमाने से क्यों नहीं
बताते हो...
तस्वीर..अभी-अभी छत पर ली गई खिले धतूरे की
7 comments:
खुबसूरत रचना |
मेरी नई रचना:- "झारखण्ड की सैर"
सुंदर रचना !
RECENT POST : - एक जबाब माँगा था.
सुंदर रचना !
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नमस्कार आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (20-10-2013) के चर्चामंच - 1404 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
waah sundar sawal ....
रचना बहुत सुन्दर हैं.भाव सम्प्रेषण अनूठा हैं
सुंदर चित्र और सुंदर रचना. फूल धतूरे का हो या कुमदिनि का फूल तो फूल है कोमल सुंदर प्यारा।
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