Friday, October 18, 2013

पूनो वाले चांद...........


शरद पूनो वाले चांद
तुम तो आज
अपनी चांदनी 
बरसाकर
कमल-कुमुदिनी खिलाते हो
ओस की बूंदे बि‍खेरकर
कोहरे का अहसास 
दि‍लाते हो
ठंडी चांदनी तले
प्रि‍य की याद में
आंखें भी नम करवाते हो
पर बताओ 
चंद्र फूल (धतूरा ) 
जो खि‍ल उठा है
अपर्णा के स्‍पर्श से
वि‍हंस उठे हो शंकर जैसे
आज चांदनी के स्‍पर्श से
उसकी खुशी को 
तुम जमाने से क्‍यों नहीं
बताते हो...

तस्‍वीर..अभी-अभी छत पर ली गई खि‍ले धतूरे की

7 comments:

  1. खुबसूरत रचना |

    मेरी नई रचना:- "झारखण्ड की सैर"

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  2. नमस्कार आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (20-10-2013) के चर्चामंच - 1404 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ

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  3. रचना बहुत सुन्दर हैं.भाव सम्प्रेषण अनूठा हैं

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  4. सुंदर चित्र और सुंदर रचना. फूल धतूरे का हो या कुमदिनि का फूल तो फूल है कोमल सुंदर प्यारा।

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