Friday, September 6, 2013

प्‍यार नहीं कहते ?


तुम्‍हारे सागर से प्‍यार की
सतह में
जब तक तैरती रही मैं
तुम लहरें उठा कर
मेरी दशा और दि‍शा
बदलते ही रहे

अब जब मैं
उतर रही हूं गहरे तल में
पैठ रही हूं
बस तुममें
तुम आंधि‍यां उठाकर
मुझे कि‍नारे पर
क्‍यों पटकना चाहते हो

क्‍या, जो झलकता रहे
छलकता रहे
वो प्‍यार होता है
जो शांत तल में
बैठ जाए, मि‍ल जाए
खो जाए, एकाकार हो जाए
क्‍या उसे
प्‍यार नहीं कहते ??

11 comments:

  1. वाह वाह क्या बात है ,बेहतरीन

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  2. आपकी यह पोस्ट आज के (०६ सितम्बर , २०१३) ब्लॉग बुलेटिन - यादें पर प्रस्तुत की जा रही है | बधाई

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  3. प्रेम अहसास हो तबतक ही सुखद लगता है , करीब जाओ तो छिटकने लगता है !

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  4. कामयाब अभिव्यक्ति...

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  5. वाह! बेहतरीन रचना है, भावपूर्ण!

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  6. बहुत सुन्दर रचना

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  7. बहुत सुन्दर प्रस्तुति। ।

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  8. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - रविवार-8/09/2013 को
    समाज सुधार कैसे हो? ..... - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः14 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर .... Darshan jangra





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  9. बहुत सुन्दर लेखन..

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