उम्मीदे-पैरहन पर ....
जख्म दिल का और भी गहरा होता गया !
बद-गुमान मसीहा तू संगदिल होता गया !!
खाकर फ़रेब बेशुमार भी ना समझा दिल !
उस संगदिल से ही आशना होता गया !!
जिसे है फख्र अपनी चाक-दामनी पर 'रश्मि' !
दिल उसी के उम्मीदे-पैरहन पर रोता गया !!
तस्वीर--साभार गूगल
तीनों शेर लाजवाब …
ReplyDeleteबहुत सुंदर बेहतरीन गजल !
ReplyDeleteनई रचना : सुधि नहि आवत.( विरह गीत )
जख्म दिल का और भी गहरा होता गया !
ReplyDeleteबद-गुमान मसीहा तू संगदिल होता गया !! excellent ..