छीज रही है
मेरे अंदर से
वो सभी कोमल भावनाएं
जो तुम्हारे होने से
भर गई थी मुझमें
आओ 'नील'
थाम लो
एक बार फिर
फूंक दो अपनी सांसे
मेरे निष्प्राण होते
बदन में
खुरदरे हो आए अंतस को
सहला दो
भर दो मुझमें प्रेमावेग
अपने जादुई व्यक्तित्व के
प्रभाव से
ले जाओ मुझे
स्वर-लहरियों की
कश्ती में बिठाकर
प्रेम के गांव में
कि भावनाओं का छीजना
तुमसे दूर होना
प्रेम-स्रोत का सूख जाना
वैसा ही है जैसे
सरस्वती का थार में
विलुप्त हो जाना.....
तस्वीर..साभार गूगल
बहुत सुन्दर एवम् भावपूरित
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत खूब !
ReplyDeleteबधाई स्वीकार करें !
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वाह वाह क्या बात है
ReplyDeleteवाह वाह क्या बात है
ReplyDeletespeechless … बहुत उम्दा… एक एक शब्द दिल के तारों को झंकृत करता हुआ…
ReplyDeleteआपकी यह प्रस्तुति 12-09-2013 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत है
ReplyDeleteकृपया पधारें
धन्यवाद
खूबसूरत अभिव्यक्ति …!!गणेशोत्सव की हार्दिक शुभकामनायें.
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें।
सादर मदन
बेहद सुन्दर..
ReplyDeleteलाजवाब..:-)
बहुत सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति
ReplyDeletelatest post गुरु वन्दना (रुबाइयाँ)