Tuesday, August 6, 2013

सपनों के सि‍तारे टांक दूं ..


एक आह तड़प उठी
ख्‍वाहि‍शों की 
तलछट से
कह दो तो
उम्र की कोरी ओढ़नी पर
सपनों के सि‍तारे टांक दूं ..

शबनम सी झरती है
शब भर याद
चाहत मेरी
और वो बेख्‍याल
अब कर दो हद मुकर्रर
कि कलम कागज के लि‍ए
है बेकरार ...

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