फिर बीती एक रात
ध्रुव तारे से आंख मिलाते
चांद को बादलों तले
देखते ही देखते छुप जाते
तुम्हारी भेजी नींद को
देखा रूठ कर दूर जाते
और अब सुबह
आंखों की कालिमा में
ढूंढ रही हूं
एक सुकून का लम्हा
कि जागती सी एक रात
फिर गुजर गई जिंदगी से
इंतजार में हूं कि
देर से जागने के बाद
कहोगे तुम
बड़ी सुकून भरी नींद आई
बस..सपने में तुम न आई
मैं हंस पडूंगी और कहूंगी
दादी कहती थी
सोए इंसान की आत्मा
विचरती है, पूरी करती है
अतृप्त कामनाएं, मगर
अभिशप्त आत्माओं को
नींद ही मयस्सर नहीं होती
किसी के ख्वाब में उतर सके
ऐसी तक़दीर नहीं होती...
तस्वीर...बस एक खूबसूरत पल की...
8 comments:
बहुत सुन्दर
हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः8
बेहतरीन अंदाज़..... सुन्दर
अभिव्यक्ति......
अभिशप्त आत्माओं को नींद मयस्सर नहीं होती ..अदभुत परिकल्पना है जी । सुंदर पंक्तियां और प्रभावित करती रचना । बहुत बढिया रश्मि जी
लाजवाब ..बहुत खूब !!
बहुत खूब...लाजबाव ..!!
बढिया
बहुत सुंदर
एक सुंदर भाव की कविता।
बहुत सुन्दर भाव !
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