ओ जाने वाले
संग अपने, मेरे
उदासियों के मौसम ले कर
न जाओ
तुम्हें पता नहीं
खुशियों की उम्र
बहुत छोटी होती है
मगर उदासियां
अंत तक
पूरे शिद़दत के साथ
साथ निभाती हें इसलिए ...
ओ जाने वाले
समेट लो अपनी हथेलियों में
मेरी दी हुई, संग जी हुई
खुशियों को
रखना संजो कर इन्हें
कुछ दे न दे तुम्हें
ये खुश यादें
होंठों पर मुस्कान बनकर तो
तिर आएगी
और बची उदासी
मेरे जीने के काम आएंगी
ओ जाने वाले
जब मैं न रहूंगी
कहीं भी..इस जहान में
और तुम पूजोगे
अपने अराध्य को
तब
मेरे प्रीत का रंग
घुलेगा उन फूलों में
जो करेंगे देवता स्वीकार
इस खातिर..कि
अर्पण हो या तर्पण
आखिरी निशानी हर कोई
संभाल कर रखता है.....
तस्वीर...हुंडरू फॉल की...
आज की ब्लॉग बुलेटिन वाकई हम मूर्ख हैं? - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ...
ReplyDeleteसादर आभार!
बहुत ही सुंदर भाव.
ReplyDeleteरामराम.
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना,,,
ReplyDeleteRECENT POST : पाँच( दोहे )
सुंदर रचना।
ReplyDeletebohat hi bhavpoorn rachna..
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