Thursday, July 25, 2013

सावन और वि‍रहनी....


रि‍मझि‍म-रि‍मझि‍म 
फुहारों के साथ
भांग बूटी की मादक
बयारों के साथ
हर्षित-अभिषेकित भी होंगे
रूद्र पिनाकी भोले नाथ !!

बरस रहा है इस बार भी
झूम-झूम के हरि‍याला सावन
करना है हलाहल से दग्धि‍त
रूद्र की देह को शीतल पावन !!

मना लि‍या है इंद्र को देवों ने
मनुहार बनी है सारी सृष्टि
कैलाशपति भीजेंगे पूरे पावस
फिर सब पर करेंगे कृपा-दृष्टि
इसी से आरंभ हुई धरती पर वृष्‍टि !!

पर शीतल जल की ये बौछार
शांत नहीं करती तप्त मन को
कैसे करूं क्या करूं अभि‍षेक अब
भुला पाती नहीं उस दहकन को !!

इसे तो अब और भी जलाता है
भुजंग-मित्र चंदन का आलेप
रात भर बरसा है पानी आँखों से
होड़ सी ठानी है जलती पलकों ने
मानों कर ही देंगी बादलो का पटाक्षेप !!

मेघ मल्हार सावन
कैसा रंग लेकर आया है
तू अबकी बार.....
भीगे नयनों से राह तकती विरहनी
बोली पेंगे भरती सखी से
देखो सखी दूर तक देखो
शायद आ ही गया हो मेरा
वो खोया साजन
मेरी भीगी प्रीत का पाहुन, मेरा मनभावन !!


{तस्वीर "The Sacred ॐ Jღurney ॐ Of The ॐ Sღul." से साभार }

6 comments:

अगर आपने अपनी ओर से प्रतिक्रिया पब्लिश कर दी है तो थोड़ा इंतज़ार करें। आपकी प्रतिक्रिया इस ब्लॉग पर ज़रूर देखने को मिलेगी।