रूप का तिलिस्म जब अरूप का सामना करे, तो बेचैनियां बढ़ जाती हैं...
Saturday, June 8, 2013
मैं दहक रंग गुलमोहर...
जेठ माह में खिली मैं दहक रंग गुलमोहर और तुम बेमौसम बरसती बूंदे क्यों न करूं स्वागत इन फुहारों का प्यासी धरा और प्यासा मन शीतल बूंदों की ही तो चाह में जीता है...... (सुबह से लगातार बारिश और भीगते गुलमोहर को देख कर आया ख्याल)
3 comments:
बहुत सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति
विपरीत परिस्थितियों में भी कुछ सार्थक होने की उम्मीद सदा रहती है. सुंदर प्रस्तुति.
बहुत ही बेहतरीन और सार्थक प्रस्तुति,आभार।
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