दर्द बेइंतहा दर्द......
एक दर्द है
जो न
दबता है
न उभरता है
बस
टीसता रहता है
सारे जिस्म में
इस मन में
न कह पाती हूं
न सह पाती हूं
एक कसक
सीने में होती है
वजह पता नहीं
आंखों को
बस वो रोती है
महसूस करती है
दर्द
बेइंतहा दर्द
ये किसने दिया
अब तो याद भी नहीं
तस्वीर- साभार गूगल
6 comments:
मर्मस्पर्शी अभिवयक्ति ....
ufff....marmik
झकझोर देनेवाली रचना
मार्मिक अभिव्यक्ति...
dil ko chhu gayi apki Rachna..Aabhar
बहुत सुंदर रचना
बहुत सुंदर
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