Tuesday, June 25, 2013

जूनूं इस कदर तारी है....


पगलाए से पतंगें 
दौड़ते हैं रौशनी के पीछे
मरने का जूनूं 
इस कदर तारी है
तो जान जाने दे

क्‍यों करूं मैं अपने 
घोसलें को बचाने के मिन्‍नतें
मर्जी जब रब की यही है
आती है आंधि‍यां
तो उसे आने दे


तस्‍वीर-साभार गूगल 

4 comments:

Anonymous said...

बहुत सुन्दर , आभार

दिगम्बर नासवा said...

पतंगे तो मारना चाहते हैं उन्हें कौन रोक सकता है ... पर बचाना जरूरी है जीवन को ... वो होना चाहिए ...

डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 27/06/2013 को चर्चा मंच पर होगा
कृपया पधारें
धन्यवाद

Madan Mohan Saxena said...

बहुत सटीक लिखा है.बेहतरीन भाव हैं