Thursday, June 20, 2013

'चांगु' झील सी आंखें


'चांगु' झील की तरह
कभी
खूबसूरत थी जो आंखे
अब
सुर्ख गुड़हल सी हैं
थमी सी, जमी सी
जि‍नमें अक्समर
तैरा करती थीं
सपनों की किश्तिं‍यां
एक तूफान ने
बो दि‍ए
उदासी के फूल
उन आंखों में
अब
नजर आता है
सपनों का खून
डराती है
बताती हैं आंखें
कि
पानी का रंग
बदलता है कैसे

बदलते पानी में
सूख गयी
केतकी झाड़ियाँ
उमस भरे बादलों ने
खार बरसा दिए
मुरझाने लगी हैं
नर्गिसों की पातियाँ
अगले बरस
जब फिर बरसेगा
एक भीगता सा बादल
फिर अपना
विस्तार लेगी
'चांगु' झील

किसी प्यारी सी
सूनी दोपहर में
फिर कचनार फूलेगी
महक उठेंगे पलाश
जब कोई चितवन
बरसेगी शरमाई सी
वीर बहूटि‍याँ फिर लौटेंगी
केतकी फिर फूटेगी

तस्‍वीर--साभार गूगल 

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