Wednesday, June 12, 2013

संदेह का काला कौआ....


करती रहती हूं
भरने की कोशि‍श
शब्‍द-बूंदो से
उम्‍मीद का घड़ा 
टप-टप टपकती
आस की बूंदों को
गि‍नती-सहेजती हैं
दो आतुर नि‍गाहें

कि तभी पी जाता है 
आकर, संदेह का
काला कौआ
घड़े का सारा पानी
भर जाती है
देह में
बेतरह थकान

सोचती हूं
कहां मि‍लेगा मुझे
यकीन वाला
वो लाल कपड़ा
जो इस घड़े के मुंह पर
कसकर बांध दूं
क्‍योंकि
ये काला कौआ तो
मुझसे
भागता ही नहीं.......


तस्‍वीर....मेरी आंखों में आस्‍मां

11 comments:

  1. सुन्दर सार्थक पोस्ट अभिव्यक्ति .आभार

    हम हिंदी चिट्ठाकार हैं

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  2. अति सुन्दर भावपूर्ण रचना । बधाई ।

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  3. अति सुन्दर भावपूर्ण रचना । बधाई ।

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  4. बहुत सुन्दर भावों की अभिव्यक्ति आभार रुखसार-ए-सत्ता ने तुम्हें बीमार किया है . आप भी दें अपना मत सूरज पंचोली दंड के भागी .नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN क्या क़र्ज़ अदा कर पाओगे?

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  5. यकीन वाला
    वो लाल कपड़ा

    :-) अच्‍छा बि‍म्‍ब है.

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  6. बहुत सुन्दर भाव ... शुभकामनायें

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  7. aapki rachnayein bohat hi bhaavpoorn hoti hain...bahut sundar prastuti

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  8. .....ये काला कौआ तो
    मुझसे
    भागता ही नहीं......

    .अपने ही विचारों में डूबकर लिखी सुन्दर सार्थक,भावों से भरी कविता.

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  9. आपकी यह सुन्दर रचना दिनांक 14.06.2013 को http://blogprasaran.blogspot.in पर लिंक की गयी है। कृपया देखें और अपना सुझाव दें।

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  10. 'विश्वास' नाम की चीज़ बाज़ार में नहीं मिलती ,यह तो मन के भीतर से जागता है !

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