Sunday, May 5, 2013

सि‍वा प्‍यार के कुछ भी नहीं.....


कभी नहीं कहा तुमने
वो ढाई आखर
जि‍से सुनकर दि‍ल भी
एक बार धड़कना भूल जाए

मगर जानती हूं मैं
उन आंखों में 
बसा है सिर्फ मेरा अक्‍स, और वहां
सि‍वा प्‍यार के कुछ भी नहीं


जानां.....शब्‍द कानों को तृप्‍त करते हैं और अहसास रूह को...न कहना कभी वो शब्‍द.....मैं अहसास के संमदर में गोते लगाती रहूंगी..तुम रि‍हा न करना कभी मुझे अपनी आंखों की कैद से

तस्‍वीर--साभार गूगल 

13 comments:

Anupama Tripathi said...

सुन्दर एहसास ....शुभकामनायें .

Manav Mehta 'मन' said...

बहुत बढ़िया

ब्लॉग बुलेटिन said...

आज की ब्लॉग बुलेटिन देश सुलग रहा है... ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

poonam said...

बहुत सुंदर

Arvind Mishra said...

कुछ न कहो कुछ भी न कहो ...कुछ अहसास ऐसे ही होते हैं -भावपूर्ण अभिव्यक्ति!

Manohar Chamoli said...

सि‍वा प्‍यार के कुछ भी नहीं..........बहुत सुंदर ...

Tanuj arora said...

मन के एहसासों का सुन्दर चित्रण,
धन्यवाद.

दिगम्बर नासवा said...

बिना कहे ही जब गूँज रहा हो शब्द कायनात में तो तो कहना जरूरी नहीं होता ... गहरा एहसास लिए ...

Aparna Bose said...

शब्‍द कानों को तृप्‍त करते हैं और अहसास रूह को.... beautiful thought :)
http://boseaparna.blogspot.in/

कालीपद "प्रसाद" said...

बहुत सुन्दर- "शब्‍द कानों को तृप्‍त करते हैं और अहसास रूह को."
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
latest post'वनफूल'

मेरा मन पंछी सा said...

अति सुन्दर....
:-)

मन के - मनके said...


प्यार वो अहसास--जिस पर पूरी कायनात
टिकी है---
और--’तुम रिहा न करना मुझे अपनी
आंखों की कैद से’
प्यार की अंतिम सीमा.

Arvind Mishra said...

कुछ न कहो कुछ भी न कहो ....हरसिंगार का फूल किसी की याद दिलाता है मुझे भी :-)