उदासी की सातवीं किस्त
* * * *
लगातार तनाव और उदासी से यूं लग रहा है जैसे रक्त-शिराएं फट पडेंगी.....इतनी बेचैनी...इतनी उदासी....अगर ऐसे में सर कई टुकड़ों में विभक्त हो जाए....तो भी आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
ऐसे पलों में भी तुम्हारी याद नहीं जाती। तुम्हें याद है.....जब भी मैं कहती थी ...देखो न..मेरे सर में दर्द है....तुम फौरन कहते...आओ...सर दबा दूं.....चलो बालों में तेल डाल दूं....आराम आ जाएगा...मैं चोटी भी बना दूंगा।
हंस उठती मैं....कहती...चोटी बनाना आता है तुम्हें...तुम कहते....कृष्ण ने राधा के बाल जैसे संवारे होंगे न...मैं उनसे भी बढ़िया संवारूंगा। एक बार मौका तो देकर देखो.....मैं मना कर देती....लोग देखेंगे तो क्या कहेंगे..
आज बहुत जी चाह रहा है कि माथे पर तुम्हारे हाथों का स्पर्श मिले। यकीन है मुझे....छंट जाएंगे सारे तनाव के बादल...मेरे बालों पर फिरा दो न अपनी उंगलियां....ढक दो मेरी आंखों को अपने हाथों से..
याद है तुम्हें....जब एक बार बहुत उदास होकर तुम लहरों के किनारे बैठे थे....जाने किन सोचों में गुम थे...मैंने तब शायद दूसरी बार देखा था तुम्हें.....गौर से....अचानक एक मचलती सी लहर आई और भिगो गई तुम्हारे पैरों को.......मेरा जी चाहा....मैं भी उन पांवों में अपने हाथ फिरा दूं.....
मगर कैसे कहती तुम्हें....तुम तो अनजान से थे.....पर जब बाद में ये बात बताई तुम्हें तो तुम्हारी आंखें भर आई थीं.....मुझे गले लगाकर कहा था तुमने.......रेशू.......ये भावनाएं अनमोल हैं मेरे लिए.....ये संबल है मेरे जीने का.....न दूर जाना कभी मुझसे....न दूर करना खुद से कभी मुझको
और आज देखो.....जाने कहां हो तुम....न रास्ते को पता है न हवाओं को....किस से पूछूं मैं हाल तुम्हारा....तुम्हारे पांव चूमने वाली लहरों ने क्या रखी होगी कोई निशानी संभालकर...
बताओ न जानां.....कहां जाउं....किस राह में खड़ी हो जाउं कि तुम्हारे पैरों का निशान मिल सके मुझे...
ऐ समंदर.....तू ही पता बता दे उनका.....जो जाने कहां छुपे बैठे हैं...
तस्वीर--पुरी का समुद्र तट..जो इन आंखों को बेहद भाता है
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लगातार तनाव और उदासी से यूं लग रहा है जैसे रक्त-शिराएं फट पडेंगी.....इतनी बेचैनी...इतनी उदासी....अगर ऐसे में सर कई टुकड़ों में विभक्त हो जाए....तो भी आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
ऐसे पलों में भी तुम्हारी याद नहीं जाती। तुम्हें याद है.....जब भी मैं कहती थी ...देखो न..मेरे सर में दर्द है....तुम फौरन कहते...आओ...सर दबा दूं.....चलो बालों में तेल डाल दूं....आराम आ जाएगा...मैं चोटी भी बना दूंगा।
हंस उठती मैं....कहती...चोटी बनाना आता है तुम्हें...तुम कहते....कृष्ण ने राधा के बाल जैसे संवारे होंगे न...मैं उनसे भी बढ़िया संवारूंगा। एक बार मौका तो देकर देखो.....मैं मना कर देती....लोग देखेंगे तो क्या कहेंगे..
आज बहुत जी चाह रहा है कि माथे पर तुम्हारे हाथों का स्पर्श मिले। यकीन है मुझे....छंट जाएंगे सारे तनाव के बादल...मेरे बालों पर फिरा दो न अपनी उंगलियां....ढक दो मेरी आंखों को अपने हाथों से..
याद है तुम्हें....जब एक बार बहुत उदास होकर तुम लहरों के किनारे बैठे थे....जाने किन सोचों में गुम थे...मैंने तब शायद दूसरी बार देखा था तुम्हें.....गौर से....अचानक एक मचलती सी लहर आई और भिगो गई तुम्हारे पैरों को.......मेरा जी चाहा....मैं भी उन पांवों में अपने हाथ फिरा दूं.....
मगर कैसे कहती तुम्हें....तुम तो अनजान से थे.....पर जब बाद में ये बात बताई तुम्हें तो तुम्हारी आंखें भर आई थीं.....मुझे गले लगाकर कहा था तुमने.......रेशू.......ये भावनाएं अनमोल हैं मेरे लिए.....ये संबल है मेरे जीने का.....न दूर जाना कभी मुझसे....न दूर करना खुद से कभी मुझको
और आज देखो.....जाने कहां हो तुम....न रास्ते को पता है न हवाओं को....किस से पूछूं मैं हाल तुम्हारा....तुम्हारे पांव चूमने वाली लहरों ने क्या रखी होगी कोई निशानी संभालकर...
बताओ न जानां.....कहां जाउं....किस राह में खड़ी हो जाउं कि तुम्हारे पैरों का निशान मिल सके मुझे...
ऐ समंदर.....तू ही पता बता दे उनका.....जो जाने कहां छुपे बैठे हैं...
तस्वीर--पुरी का समुद्र तट..जो इन आंखों को बेहद भाता है
10 comments:
स्मृति में बसी बीती बातें विरह में उभर कर आ गयी .गहन अभिव्यक्ति
पुरी का समुद्र तट..जो इन आंखों को बेहद भाता है ... सुन्दर दृश्य और उम्दा लेखन
आपके प्रेम भाव गजब का है।
प्रेम प्रेम और बस प्रेम
अतीत की यादें कब कहाँ पीछा छोडती हैं,
अतीत की यादें कब कहाँ पीछा छोडती हैं,
बहुत उम्दा,लाजबाब लेखन ,,
Recent post: ओ प्यारी लली,
बहुत सुन्दर..
पंक्तियों में घुमती यादों की तस्वीरें..
स्मृति पट पर उभरी यादों का विरह के साथ सुंदर वर्णन किया है रश्मि ,बधाई इस रचना के लिए
विराह्भावना को लालित्य पूर्ण ढंग से शब्दों में पिरोया है आपने
बहुत खूब!
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