Friday, May 17, 2013

इंतजार मूंगि‍या होठों का.....


इंतजार में उनके
खुली ही रह गई आंखें
पलकें भी एक बार झपककर
न मि‍ल पाईं गले

पलाश सी है सुर्ख 
पथराई सी
अब ये दो आंखें
न आहट, न कोई नमी

जलते हुए इन
दो दि‍यों को
इंतजार है सिर्फ
उन मूंगि‍या होठों के
भीगे स्‍पर्श का

फि‍र एक पत्‍थर
अहि‍ल्‍या बन जाएगी..
...

17 comments:

  1. पलाश सी है सुर्ख
    पथराई सी
    अब ये दो आंखें
    न आहट, न कोई नमी..very nice .....

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  2. बहुत सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति.मन को छू गयी.आभार . ये गाँधी के सपनों का भारत नहीं .

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  3. khoobshurat dard bhare ahsas ,जलते हुए इन
    दो दि‍यों को
    इंतजार है सिर्फ
    उन मूंगि‍या होठों के
    भीगे स्‍पर्श का

    फि‍र एक पत्‍थर
    अहि‍ल्‍या बन जाएगी

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  4. जलते हुए इन
    दो दि‍यों को
    इंतजार है सिर्फ
    उन मूंगि‍या होठों के
    भीगे स्‍पर्श का

    फि‍र एक पत्‍थर
    अहि‍ल्‍या बन जाएगी.....bahut sundar
    डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
    अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
    latest post वटवृक्ष

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  5. सुंदर ,हृदयस्पर्शी रचना .....

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  6. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति....


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  7. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति....


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  8. जलते हुए इन
    दो दि‍यों को
    इंतजार है सिर्फ
    उन मूंगि‍या होठों के
    भीगे स्‍पर्श का....बेहद ही अद्वितीय भाव और बिम्ब


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  9. जलते हुए इन
    दो दि‍यों को
    इंतजार है सिर्फ
    उन मूंगि‍या होठों के
    भीगे स्‍पर्श का

    फि‍र एक पत्‍थर
    अहि‍ल्‍या बन जाएगी.....अद्वितीय बिम्ब संरचना !!

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  10. राम का लंबा इंतज़ार ....
    लाजवाब भावमय रचना है ...

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  11. बहुत सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति

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  12. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (19-05-2013) के चर्चा मंच 1249 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ

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