उदासी की पांचवी किस्त
* * * *
फिर करवटें बदलते गुजरी रात....इस कदर तुम्हारी कमी है जैसे कोई उंची पहाड़ियों पर दौड़कर चढ़ने के बाद भरपूर सांस लेना चाहता हो और हवाओं में इतना आक्सीजन नहीं कि उसकी सांसे संभल पाए।
अब तुम कहां चले गए....इससे पहले कि ढह जाउं....खत्म हो जाउं..... कस लो अपने बाजुपाश में....जाने कहां खो गया वो अमिकलश सा आलिंगन...
आ भी जाओ जानां...कहीं गलमोहर के फूल न झड़ जाए सारे....
तस्वीर--मेरे घर के पीछे का गुलमोहर
* * * *
फिर करवटें बदलते गुजरी रात....इस कदर तुम्हारी कमी है जैसे कोई उंची पहाड़ियों पर दौड़कर चढ़ने के बाद भरपूर सांस लेना चाहता हो और हवाओं में इतना आक्सीजन नहीं कि उसकी सांसे संभल पाए।
आज पांचवा दिन है, जब तुम नहीं, तुम्हारी कोई खबर नहीं । मैंने सोचा....सुबह जल्दी नहा लूं....क्योंकि मन के साथ तन भी कुम्हलाने लगा है अब। सूजी सी आंखे चुगली करने लगी है मेरी......सबसे ।
मगर पानी की बूंदे भी कैसे जलाती है तन...आज इसका अहसास हुआ। शावर के साथ यादें भी बरस पड़ीं।
मगर पानी की बूंदे भी कैसे जलाती है तन...आज इसका अहसास हुआ। शावर के साथ यादें भी बरस पड़ीं।
तुम्हें हमेशा शावर लेते वक्त तेज आवाज में गाने की आदत रही है। और मुझे तुम्हारी ये अदा बहुत पसंद है। तुम तो यूं भी करते थे अक्सर कि जब बाहर कहीं होते...और तुम्हें गाने का मन होताश् या मेरा सुनने का मन होता, तो वहीं से फोन कर सुनाने लगते थे। अपने आफिस की बाल्कनी से......होटल के कमरे से और कई बार तो सड़क पर गाड़ी रोककर किसी पेड़ के नीचे खड़े होकर.....
.
मैं हंसकर कहती......लोग तुम्हें पागल समझेंगे.....तुम कहते....समझने दो....मुझे तुम्हें सुनाना है बस....
आज मेरे होंठ स्वत: गुनगुनाने लगे गीत.....'मुझे ऐसे मत सताओ.....तुम ले गए हो अपने, संग नींद भी हमारी, तुम्हें याद करते-करते.......... आंखों से झर-झर बहते आंसू.....वो नमकीन पानी ... मन के साथ तन भी जल रहा है
.
मैं हंसकर कहती......लोग तुम्हें पागल समझेंगे.....तुम कहते....समझने दो....मुझे तुम्हें सुनाना है बस....
आज मेरे होंठ स्वत: गुनगुनाने लगे गीत.....'मुझे ऐसे मत सताओ.....तुम ले गए हो अपने, संग नींद भी हमारी, तुम्हें याद करते-करते.......... आंखों से झर-झर बहते आंसू.....वो नमकीन पानी ... मन के साथ तन भी जल रहा है
बहुत उदास हूं हमदम..... मेरे आंसू ही पोंछने आ जाओ। देखो.....आज मैंने तुम्हारी पंसद के लाल रंग के कपड़े पहने हैं। कहते थे न तुम......बहुत अच्छा लगता है लाल रंग तुम पर.....जैसे पलाश...जैसे गुलमोहर का चटख रंग....
तुम तो रोज एक फूल दिया करते थे मुझे। कभी एक कली गुलाब की तो कभी ढेर सारे फूलों से लादकर कहते थे तुम....मेरी बाहों में रहना...हमेशा...फूलों की तरह खिली-खिली ...मैं हंस देती थी..
तुम तो रोज एक फूल दिया करते थे मुझे। कभी एक कली गुलाब की तो कभी ढेर सारे फूलों से लादकर कहते थे तुम....मेरी बाहों में रहना...हमेशा...फूलों की तरह खिली-खिली ...मैं हंस देती थी..
अब तुम कहां चले गए....इससे पहले कि ढह जाउं....खत्म हो जाउं..... कस लो अपने बाजुपाश में....जाने कहां खो गया वो अमिकलश सा आलिंगन...
आ भी जाओ जानां...कहीं गलमोहर के फूल न झड़ जाए सारे....
तस्वीर--मेरे घर के पीछे का गुलमोहर
11 comments:
bahut khoob आ भी जाओ जानां...कहीं गलमोहर के फूल न झड़ जाए सारे
..कहीं गलमोहर के फूल न झड़ जाए सारे....
उदासी किस्त-दर-किस्त
यादों की बारिश में भीगती रहेगी
बेहतरीन
गुलमोहर का फूल खिलेगा ... इस सिद्दत की नमी से खिलेगा ... उम्दा ...
बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुतीकरण.
आपकी यह रचना कल मंगलवार (28 -05-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
लगता है ,अभी इंतजार और करना होगा,कसे हुए कथावस्तु के साथ सही दिशा में कहानी बढ़ रही है,गुलमोहर के फूल झड जायेंगे,तो फिर कलियाँ आ जाएगी,यह तो प्रकर्ति का चलने वाला सिलसिला है,पर जिसका इंतजार है वह कब आएगा,आएगा भी या नहीं,यह उत्सुकता ज्यादा है.
अच्छी रचना,अभी इंतजार है,आगे का.
लगता है ,अभी इंतजार और करना होगा,कसे हुए कथावस्तु के साथ सही दिशा में कहानी बढ़ रही है,गुलमोहर के फूल झड जायेंगे,तो फिर कलियाँ आ जाएगी,यह तो प्रकर्ति का चलने वाला सिलसिला है,पर जिसका इंतजार है वह कब आएगा,आएगा भी या नहीं,यह उत्सुकता ज्यादा है.
अच्छी रचना,अभी इंतजार है,आगे का.
भवनाओं को उजागर करने में सफल रचना दर्द और इंतजार का खुबसूरत तालमेल कुल मिलकर खुबसूरत रचना |
बहुत सुंदर
बढिया
सुर्ख गुलमोहर के साथ गुनगुनी यादों की गुनगुनहाट और एक प्यारी सी चाहत...भाव मन को मोहते हैं.
बहुत सुंदर!
Post a Comment