Saturday, May 25, 2013

' द रेनबो गॉडेस' ...

उदासी की चौथी कि‍स्‍त  
* * * * 


जिंदगी में पसरा है गहन उदासी का भूरापन.....उदास मैं....उदास है सारी  का़यनात.....लगता है अब जीवन में सूनेपन का काला रंग भी  रच जाएगा ..... तुम्‍हारे बगैर.....

तुम तो कहते थे...कि मैं तस्‍वीर हूं सभी रंगों की.....मुझमें वो सारे रंग हैं, जि‍तने प्रकृति ने इस दुनि‍या को दिए।

 ' द रेनबो गॉडेस' ...यही नाम दि‍या था न तुमने मुझे.......बताओ....कहां गए रंग सारे......यहां वि‍योग का पीलापन है पसरा हुआ.....उम्‍मीद का सुनहला रंग अब मटमैला हो चला है.....

कोई रंग नहीं....कोई आवाज नहीं...बस नीरव दोपहर में चीखता शोर है झींगुरों का.......जैसे चांदनी रात और एक ठहरे झील के आस-पास समवेत स्‍वर में रो रहे हों सारे झींगुर....

कहां चले गए हो तुम....क्‍या मेरी आवाज नहीं पहुंच पाती तुम तक.....तुम तो कहते थे...........मनुहार का कच्‍चा हूं बहुत.......एक आवाज दोगे.......दौड़ा चला आउंगा....

अब तो ये आवाज भी रूंध चली है। कब से पुकार रही हूं......तुम सुनते ही नहीं। एक बार तो मौका दो मुझे मनाने का....मनुहार का....जाने कि‍स गहन गुफा़ में जा छि‍पे हो, जहां आवाज पर भी बंदि‍श है.....मेरी आहें बेअसर है.....

लगातार फोन लगाकर थक गई हैं मेरी अंगुलि‍या.....बार-बार यही आवाज......स्‍वीच आफ....ये क्‍या हो गया...क्‍यों हो गया... आओ न जानां...मेरी जिंदगी में घुले सारे रंग उड़ चले हैं....उदास हो गए है....

आओ न...रंग भर दो सारे.....फि‍र से बना दो मुझको रंगों वाली तस्‍वीर....

6 comments:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

बहुत बेहतरीन सुंदर प्रस्तुति ,,,

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Onkar said...

सुन्दर रचना

सु-मन (Suman Kapoor) said...

बढ़िया

दिगम्बर नासवा said...

एक ही सांस में पढ़ गया ... गज़ब की शिद्दत है इन शब्दों में...

dr.mahendrag said...

विरह की वेदना को जतलाती सुन्दर रचना

आशा बिष्ट said...

सुन्दर प्रस्तुति