Tuesday, May 21, 2013

बता दे ऐ जानां...


बनाकर आस्‍मां ओढ़ लूं तुमको
या बन धरती बि‍छ जाउं
सुनूं दि‍ल की धड़कन
या लरज़ते होंठों की ताब में झुलस जाउं 
जा सि‍मटूं तेरे आगोश में
या हाथ थाम, चांद रात में दूर नि‍कल जाउं

बता दे ऐ जानां...इन आरजुओं का क्‍या होगा।

चार कद़म चलकर, दो कद़म लौट आना
तेरे मि‍लने का न कोई आसरा
न उस रब का कोई ठि‍काना
तुझमें डूबूं या कि उबर जाउं सबसे
स्‍याह रात, उलझे जज्‍बात, बेइंतहा प्‍यार

बता दे ऐ जानां, इस दीवानगी का क्‍या होगा।

घुल जाउं रग-ए-जां में लहू बनकर
या टपक पडूं आंख से आंसू बनकर
सि‍मट जाउं हथेलियों में रेखाओं की तरह
कि लि‍पट जाउं कदमों में लता बनकर
रूहानी महब़ूब मेरे, ऐ मेरे फरि‍श्‍ते

बता दे ऐ जानां.....मेरी मोहब्‍बत का क्‍या होगा।

10 comments:

  1. khoobshrat khayal behatareen andz ,dil ko chu lene vali rachna

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  2. सब कुछ बयां कर भी यह प्रश्न अपनी जगह मोजूद है,कि आरजू.दीवानगी,और महोबत्त का क्या होगा? बड़ी सुन्दर रचना.

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  3. Behad khubsurat rachna .Ruhani hariste kya inarjuon .......muhabbaton ka kya hoga ? dil ko chhu gaya.
    डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
    अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
    latest postअनुभूति : विविधा
    latest post वटवृक्ष

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  4. बेशक एक बेहतरीन रचना

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  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल बुधवार (22-05-2013) के कितनी कटुता लिखे .......हर तरफ बबाल ही बबाल --- बुधवारीय चर्चा -1252 पर भी होगी!
    सादर...!

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  6. प्यार रचना ..मुहब्बत करने वाले अंजाम के परवाह करते ही कहाँ है

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  7. शानदार प्रस्तुति

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  8. शानदार प्रस्तुति

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  9. शानदार प्रस्तुति

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  10. Pahli baar aapke blogpe aayi hun...behad sundar!

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