Monday, May 20, 2013

हंसि‍ए सा चांद


ये हंसि‍ए सा चांद
जब भी मेरी छत पर आता है
जी चाहता है
हंसि‍ए से
मेरे इर्द-गि‍र्द उग आए
बेमतलब के खर-पतवार 
काट डालूं
और कह दूं इस चांद से
फक़त महबूब का चेहरा ही
नहीं दि‍खता तुझमें
तू मेरा औजार भी बन सकता है
मत समझ खुद को केवल
प्‍यार के काब़ि‍ल
कुछ सरफि‍रों का
तू हथि‍यार भी बन सकता है......


तस्‍वीर--साभार गूगल 

5 comments:

  1. वाह ... बहुत खूब

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  2. तू मेरा औजार भी बन सकता है
    मत समझ खुद को केवल
    प्‍यार के काब़ि‍ल
    कुछ सरफि‍रों का
    तू हथि‍यार भी बन सकता है......nice lines,

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  3. मत समझ खुद को केवल
    प्‍यार के काब़ि‍ल
    कुछ सरफि‍रों का
    तू हथि‍यार भी बन सकता है......

    वर्तमान का सच तो यही है
    बहुत सुंदर रचना


    आग्रह है पढ़ें "बूंद-"
    http://jyoti-khare.blogspot.in


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  4. बहुत खूब ... अलग अंजाद से देखना शुरू किया है चाँद को ... हथियार ... एक और रूप ...

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