रूप का तिलिस्म जब अरूप का सामना करे, तो बेचैनियां बढ़ जाती हैं...
सुन्दर!
bahut khub mere naye blog par bhi aayenआखिर कब तक अपनी बेटी को निर्भया और बेटे को सरबजीत बनाना होगा ?
सार्थक बिम्बों ,प्रतीकों के माध्यम से लिखी एक अच्छी कविता |
प्राकृतिक बिम्बों के माध्यम से गूढ़ बातों को सहजता से कह दिया है, बधाई.......
एक उत्कट चाह प्रतिध्वनित होती है आपकी इस कविता में - प्रिय को सम्पूर्ण समग्रता में पा लेने की चाह !मगर ध्यान रहे निसर्ग की उत्कृष्टतम कृतियाँ जन जन के लिए हैं -उन पर एकाधिकार का चाह क्या आत्मकेंद्रिकता नहीं? :-)
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5 comments:
सुन्दर!
bahut khub mere naye blog par bhi aayen
आखिर कब तक अपनी बेटी को निर्भया और बेटे को सरबजीत बनाना होगा ?
सार्थक बिम्बों ,प्रतीकों के माध्यम से लिखी एक अच्छी कविता |
प्राकृतिक बिम्बों के माध्यम से गूढ़ बातों को सहजता से कह दिया है, बधाई.......
एक उत्कट चाह प्रतिध्वनित होती है आपकी इस कविता में - प्रिय को सम्पूर्ण समग्रता में पा लेने की चाह !
मगर ध्यान रहे निसर्ग की उत्कृष्टतम कृतियाँ जन जन के लिए हैं -उन पर एकाधिकार का चाह क्या आत्मकेंद्रिकता नहीं? :-)
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