Thursday, April 25, 2013
एक शाम महब़ूब के नाम...
जिंदगी की किताब में
फिर सुनहरी हो गई
एक शाम
मेरे महब़ूब के नाम....
कि आई
बर्फीली पहाड़ियों से
एक सदा
दूर रेगिस्तान में
सूखे, पड़पड़ाए होंठों पर
रोप गई
खिली-खिली हंसी का बीज
जी चाहता है अब
माथे पर पड़ी
आवारा लट को
चूम कर हौले से हटा दूं
तल्ख यादों से उपजी सिलवटें
जो बन गई हैं माथे की लकीर
फेरकर उनमें हाथ, कहूं
शफ़्फाक रूह के मालिक
आ.....तू रंग दे मुझे
रंग जाउं मैं तेरे रंग में
मेरे रांझना...मेरे महबू़ब
तू ही तो है रंगरेजां मेरा.......
तस्वीर--एक मित्र की जिसने पहली बार छत्तीसगढ़ जाकर पलाश देखा और तस्वीर मुझे भेजी
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7 comments:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति !
डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
latest post बे-शरम दरिंदें !
latest post सजा कैसा हो ?
सुन्दर प्रस्तुति, जी चाहता है अब
माथे पर पड़ी
आवारा लट को
चूम कर हौले से हटा दूं
तल्ख यादों से उपजी सिलवटें
जो बन गई हैं माथे की लकीर
फेरकर उनमें हाथ, कहूं
शफ़्फाक रूह के मालिक
आ.....तू रंग दे मुझे
रंग जाउं मैं तेरे रंग में
मेरे रांझना...मेरे महबू़ब
तू ही तो है रंगरेजां मेरा.......
तल्ख यादों से उपजी सिलवटें
जो बन गई हैं माथे की लकीर.....आकर्षक उपमा।
सुन्दर रचना | बधाई
कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
बहुत सुंदर रश्मि जी। इस सुंदर रचना के लिए बधाई तो बनती है।
............
एक विनम्र निवेदन: प्लीज़ वोट करें, सपोर्ट करें!
waah ..bahut sunder
जी चाहता है अब
माथे पर पड़ी
आवारा लट को
चूम कर हौले से हटा दूं
bahut hi khoob ...
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