Monday, April 15, 2013

यादों की रेज़गारी....


यादों की रेज़गारी को
शब्‍दों के नोट में तब्‍दील कर
वो रोज ही लि‍खा करता है
एक ख़त मेरे नाम

ख़त में होती
दुनि‍यादारी की तमाम बातें
दाल-सब्‍जियों के भाव
काम की थकान
और बोझि‍ल दि‍न का बयान

पर ताजिंदगी नहीं कह पाया
वो अपने जज्‍बात मुझसे
बि‍ना नागा लि‍खे हर ख़त में
मेरे लि‍ए होता है
सिर्फ एक शब्‍द....'जान'

और मैं समझ जाती,कि
उमड़ते प्‍यार को वो
जमा करता होगा एक गुल्‍लक में
मुझे तब देने के लि‍ए,जब
खत्‍म हो जाएगी यादों की रेज़गारी



तस्‍वीर...कश्‍मीर की और नज़र मेरे कैमरे की

9 comments:

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

बहुत बढिया
क्या बात

सदा said...

वाह ... अनुपम भाव संयोजित किये हैं आपने

Jyoti khare said...

पर ताजिंदगी नहीं कह पाया
वो अपने जज्‍बात मुझसे
बि‍ना नागा लि‍खे हर ख़त में
मेरे लि‍ए होता है
सिर्फ एक शब्‍द....'जान'-----
प्रेम और अपनेपन का सुंदर अहसास
आम प्रेम कविताओं से अलग
सुंदर प्रस्तुति
बधाई


एक गीत पढें
जीवन लगे लजीज----

अज़ीज़ जौनपुरी said...

bahut sundar "jan" hi is prastuti ki jan hai behatareen ,sadar

Rajesh Kumari said...

आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार १६ /४/ १३ को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां स्वागत है ।

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

वाह वाह !!! बहुत ही अनुपम भाव,,उम्दा प्रस्तुति,आभार

Recent Post : अमन के लिए.

प्रतिभा सक्सेना said...

हर बात लिखी जा सकती है क्या?

दिगम्बर नासवा said...

यादों की ये रेजगारी भी क्या कभी खत्म होती है ... महाग्रंथ लिखे जाते हैं अंश से ही ...

Sadhana Vaid said...

अनकहे जज्बातों को समझने के लिये भी तो बहुत बड़ा दिल और बहुत सारा भरोसा चाहिये जो आपके पास भरपूर है ! नाज़ुक अहसास लिये बहुत प्यारी कविता !