Thursday, February 14, 2013

प्रेम..प्रेम..प्रेम




मेरे मौला
उन तक मेरी
आवाज पहुंचा दे
कि जी न पाएंगे अब

रख दे रहम का हाथ
सर पे

एक आस है
बंधती भी नहीं
टूटती भी नहीं
भरा-भरा सा है अंदर
न बहता है न सूखता है

एक आग है धधकती हरदम
आंख बरसाता प्रेम
एक जि‍द है
न देती कहने न पूछने

मेरे मौला
अहसास जुर्म तो नहीं
इंसाफ दि‍ला दे
एक बार उसे सामने तो ला दे....

तस्‍वीर--साभार गूगल

7 comments:

Rajendra kumar said...

मौला हमेशा हमारे साथ है भरोसा रखना चाहिए,बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति.

ब्लोग्स संकलक (ब्लॉग कलश) पर आपका स्वागत है,आपका परामर्श चाहिए.
"ब्लॉग कलश"

Pratibha Verma said...

amazing ....

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

क्या कहने
बहुत सुंदर

Unknown said...

Bahut sundar Rachna ...
http://ehsaasmere.blogspot.in/2013/02/blog-post_11.html

विभूति" said...

बहुत ही सहज शब्दों में कितनी गहरी बात कह दी आपने..... खुबसूरत अभिवयक्ति....

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

बहुत शानदार उम्दा अभिव्यक्ति ,,

recent post: बसंती रंग छा गया

डॉ. मोनिका शर्मा said...

बहुत सुंदर कविता.....