Sunday, February 24, 2013

कहो प्रि‍य......



प्रि‍य हो तुम
ठीक वैसे
जैसे दि‍संबर की सर्दियों में
धूप प्रि‍य होती है सभी को

और मैं सूरजमुखी

तुम्‍हारी जरूरत है
ठीक वैसे
जैसे चांदनी की होती है
रात में खि‍लने वालों फूलों को

और मैं रातरानी

कहो प्रि‍य
मैं फूल ही रहूं या
बन जाउं पपीहा या चकोर
या दे दूं जान
बनकर पतंगा.......

कह भी दो कि‍ जानते हो तुम भी
प्‍यार में बस नहीं होता कि‍सी का.......

तस्‍वीर--जो मेरे कैमरे को पसंद आई

7 comments:

विभूति" said...

bhaut hi acchi....

मेरा मन पंछी सा said...

प्यार में बस नहीं होता किसी का..
सुन्दर भावपूर्ण...

Shalini kaushik said...

.बहुत सुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति आभार अकलमंद ऐसे दुनिया में तबाही करते हैं . आप भी जानें हमारे संविधान के अनुसार कैग [विनोद राय] मुख्य निर्वाचन आयुक्त [टी.एन.शेषन] नहीं हो सकते

Pratibha Verma said...

बहुत सुन्दर ....

Rajendra kumar said...

प्रियवर को सुन्दर उपमा से संजोया है,सुन्दर प्रस्तुतीकरण.

सारिका मुकेश said...

प्रेम की गहन अनुभूति लिए सुन्दर कविता..

डॉ एल के शर्मा said...

और मैं रातरानी

कहो प्रि‍य
मैं फूल ही रहूं या
बन जाउं पपीहा या चकोर..बहुत ही सुंदर !!