दिल की दराज में
बंद है एक वादा
कि आंखों से कहने वाली बातें
शब्दों के फेर में न पड़ जाए
दरअसल यह
इक ख्याल ही है
कि हवा में लिपटी नमी
उन होंठों का स्पर्श है
जो उस जादूगर ने
मेरी याद में
एक हरियाये पत्ते पर
धरा था आज सुबह....
तुमसे बिन बताए
शहर से तेरे चली आई है
मेरे घर तक
बासंती हवा
प्रेम में आड़ोलित मन
चाहता है
चूमकर कान की लौ
कह दूं आज चुपके से
कि अब से
हर दर्द तेरा बस मेरा हुआ.....
तस्वीर--साभार गूगल
यह तुम्हारे भीतर की पूर्णिमा है जो बांट लेना चाहती है दूसरों की अमावस्या - यह बात इस कविता में शिद्दत के साथ दिख रही है।
ReplyDeleteऔर कुछ भी उसे कह सकते हो यारो,लेकिन दर्द जिस दिल में न हो,उसे दिल न कहो,,,
ReplyDeleteRECENT POST... नवगीत,
बेहद ख़ूबसूरत और उम्दा
ReplyDeleteशब्दों की मुस्कुराहट पर आने वाले दिनों में
ReplyDeletesundartam bhavo se otprot rachana प्रेम में आड़ोलित मन
ReplyDeleteचाहता है
चूमकर कान की लौ
कह दूं आज चुपके से
कि अब से
हर दर्द तेरा बस मेरा हुआ.....
कह दूं आज चुपके से
ReplyDeleteकि अब से
हर दर्द तेरा बस मेरा हुआ.....
bahut accha ...aisee chah rakhna badi bat hai.....
आपकी पोस्ट 14 - 02- 2013 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
ReplyDeleteकृपया पधारें ।
उत्कृष्ट प्रस्तुति-
ReplyDeleteआभार आदरेया |
bahut badhiya ...
ReplyDeleteह्रदय को छूती प्रस्तुति |भावपूर्ण अभिव्यक्ति |
ReplyDeleteआशा
very nice :-)
ReplyDeleteवाह ... बहुत खूबसूरत अहसास
ReplyDeleteप्रेम में आड़ोलित मन
ReplyDeleteचाहता है
चूमकर कान की लौ
कह दूं आज चुपके से
कि अब से
हर दर्द तेरा बस मेरा हुआ.....
सुंदर एहसास !!