Sunday, January 6, 2013

कुहासा और प्रेम




जनवरी का महीना....ऐसी ही कुहासे भरी सुबह थी वो.....हाथ भर की दूरी पर भी कुछ नजर नहीं आ रहा था...उसने अपने कान की चारों तरफ शाल को कसकर लपेटा और तेज कदमों से चल पड़ी....कालेज का पहला पीरि‍यड सुबह 7.40 से शुरू था। इस अंधेरे कुहासे से उसे घबराहट होने लगी....कहीं कुछ अनहोनी न हो जाए। खुद को ही कोसा उसने। क्‍या पड़ी थी सुबह-सुबह उसे घर से निकलने की। एक दि‍न कालेज छूट ही जाता तो क्‍या आफत हो जाती। मां ने कि‍तना कहा...वल्‍लरी..आज मत जा कालेज। देख तो...कि‍तना धुंध है। लगता नहीं सूरज नि‍कलेगा। कोई नहीं आएगा कालेज में...पर नहीं, उसे तो जि‍द थी..कहा-मां..रोज ऐसा ही कुहासा रहेगा तो क्‍या मैं रोज कालेज नहीं जाउंगी। बेटी की जिद के आगे मां हारी ...चल पड़ी वल्‍लरी।
सड़क पर घना कोहरा...कोई राहगीर भी नजर नहीं आ रहा था। इक्‍के-दुक्‍के चलने वाले सभी गाड़ि‍यों के हेडलाइट़स जले हुए थे। वल्‍लरी कदम संभाल कर रखती हुई चली जा रही थी। बस...कुछ दूर और। कालेज कैंपस तक पहुंच जाए तो चैन की सांस ले। तभी..एक गाड़ी उसके ठीक बगल में आकर रूकी। एक बार तो वो चौंक गई, घबरा भी गई। जब शीशा उतरा तो ड्राइविंग सीट पर उसे रवि दि‍खा...उसकी सहेली नि‍धी का भाई। उसने लंबी सांस ली। रवि‍ ने कहा- चलि‍ए मैं आपको कालेज तक ड्राप कर दूं। इतनी ठंड में आप कब तक पैदल चलि‍एगा....न चाहते हुए भी वह गाड़ी में बैठ गई। क्‍योंकि इस अंधेरी राह पर अकेले जाने से अच्‍छा था कि‍सी पहचान वाले के साथ हो लेना।
हेडलाइट़स जल रही थी। कार के शीशे कुहासे से ढक गए थे। गाड़ी में हल्‍का म्‍यूजि‍क बज रहा था। बड़ा रोमांटिक मौसम था। रवि‍ को वह पि‍छले वर्ष से ही जानती है। फर्स्‍ट ईयर में जब नि‍धि‍ से दोस्‍ती हुई थी तो उसी ने अपने भाई से मि‍लवाया था जो उसे छोड़ने कभी-कभी कालेज आता था। एक दो बार कि‍सी की जन्‍मदि‍न की पार्टी में मि‍लना हुआ था। रवि लास्‍ट ईयर पीजी में था। बहुत अच्‍छा व्‍यक्‍ति‍त्‍व था उसका। लंबा, सांवला और आकर्षक। बातचीत भी मधुर व संयमि‍त भाषा में करता था। उसकी बातों से लगता था जैसे वो वल्‍लरी को पसंद करता है। वल्‍लरी भी उसे पसंद करती थी...पर इससे ज्‍यादा कुछ नहीं। कभी दोनों अकेले में नहीं मि‍ले थे इसलि‍ए उन्‍हें बात करने में संकोच हो रहा था। दोनों में हल्‍की-फुल्‍की बातों पर बातचीत होने लगी। वल्‍लरी को लगा कि रवि ऐसा लड़का है जिसे दोस्‍त बनाया जा सकता है। और यह बात तो रवि के मन में उसी दि‍न से थी जब वो पहली बार मि‍ले थे, शायद उससे भी ज्‍यादा।
सड़क पर इतना कुहासा था कि गाड़ी चलाना मुश्‍कि‍ल हो गया। तब रवि ने कार रोकी..यह कहकर कि आगे रास्‍ता दि‍खाई नहीं दे रहा...जरा आगे का शीशा साफ कर लूं। वल्‍लरी गुनगुनाती हुई देखती रही बाहर का नजारा। रवि वापस आ गया। थोड़ी दूर पर ही कालेज था। वल्‍लरी ने उतरने से पहले रवि का शुक्रि‍या अदा कि‍या और जैसे ही दरवाजा खोलने के लि‍ए हाथ आगे बढ़ाया.....कुहासे भरे शीशे पर उंगलि‍यों से लि‍खा था...''आई लव यू वल्‍लरी''
जब भी जनवरी महीने में कुहासा होता है...वल्‍लरी यादों में खो जाती है और रवि से जिद कर के उसके साथ लांग ड्राइव पर चली जाती है...आखि‍र इसी कोहरे की चादर ने तो उसे उसके मनमीत से मि‍लवाया था।

5 comments:

  1. बहुत प्यारी सी लघुकथा

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  2. ये छोटी छोटी यादें मन को छू जाती हैं. भावपूर्ण कहानी.

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  3. choti pr sundar prastuti, new post betiyan

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  4. सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति .

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