Saturday, January 26, 2013

सूनी सी शाम


बड़ी सूनी होती है
वह शाम
जब कि‍सी के आमद का हो
बेइन्‍तहा इंतजार
और अपने ही हाथों
घर के साथ
दि‍ल के कपाट भी
बंद करना पड़े
................
जमाना रहगुजर न समझ बैठे कहीं....


तस्‍वीर--उड़ीसा बार्डर के पास एक ढलती शाम की

3 comments:

  1. अन्तः में एक अजीब-सी पीड़ा की अनुभूति... सुन्दर अभिव्यक्ति, शुभकामनाएँ.

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  2. पर दिया जलता रहे , भटके राही के लिए

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